Monday, November 29, 2021

"मेरी परछाई.."

भूल भुलैया प्रेम की डगर। 
मेरी परछाई मेरी हमसफ़र। 

"चुनाव.."

टी वी चैनल टमाटर बेचने लगे हैं। 
अपने अपने भाव बताने लगे हैं। 
गैस सब्सिडी फिर मिलेगी जनता को,
शायद चुनाव करीब आने लगे हैं। 

Friday, November 26, 2021

"बातें .."

सब कुछ पहले जैसा ही तो है,
तुम भी हो, हम भी हैं। 
मुलाकातें भी हैं, हाँ मगर अब,
पहले की तरह, वो बातें नहीं हैं। 

"मुलाकात.."

नींद आये तो शायद वो ख्वाब में आएं। 
एक उम्र बीत गई उनसे मुलाकात हुए। 

"बिछुड़ने के पल.."

काम पढ़ा लिखा हूँ मगर,
इतना हिसाब लगा लेता हूँ मैं। 
तुमसे मिलने से ज़्यादा,
बिछुड़ने के पल  पाता हूँ मैं। 

Monday, November 22, 2021

"मरहम"

अब दिल के ज़ख्म कहाँ भरते हैं। 
"मरहम" जैसे लोग कहाँ मिलते हैं। 

Sunday, November 21, 2021

"मील के पत्थर.."

जब हम अपनी राह बनाने  निकले,
ज़िन्दगी जीने के कई बहाने निकले। 
मेरे हौसलों ने बुहारा राह के शूलों को,
मील के पत्थर जाने पहचाने निकले।

"कोरे पन्ने .."

 
रोज़  डायरी लिखता हूँ में,
तुम्हारी यादें तुम्हारी बातें। 
तुम कहते हो कोरे पन्ने हैं सारे,
शायद तुमने गौर से देखा ही नहीं। 
भीगे हैं डायरी के पन्ने सारे,
आंसुओं से बने  हैं शब्द सारे। 

"अंतर्राष्टीय पुरुष दिवस.."

हमारा क्या है साहब,
हम तो बस पुरुष हैं। 
कोई नहीं मनाता हमारा दिन,
हम तो खुद भी नहीं मनाते हैं। 
आप तो सब जानते हैं,
गरीब का कोई दिन नहीं होता। 

(अंतर्राष्टीय पुरुष दिवस पर, 
दिनांक १९ नवम्बर २०२१ को लिखी)

"मेरी महफ़िल में,.."

[१]
बाकी सब कवितायेँ भ्रम हैं,
बस यही कहानी सच है। 
[२]
मेरी महफ़िल में,
तुम्हारी गैर मौजूदगी,
इतना नहीं खलती मुझे। 
मगर जब तुम आ जाती हो,
तब तुम्हारा किसी गैर से बात करना,
सच में, बहुत खलता है मुझे। 

Tuesday, November 16, 2021

"बच्चे.."

धूप, तुलसी, अन्नपूर्णा,
सब हैं घर में। 
जब तक बच्चे,
स्कूल से घर नहीं आते,
"चिंता" ही रहती है,
बस सबके घर में। 

(14 नवंबर, बाल दिवस पर)

"प्यार की दस्तक.."

क्यों देते हो प्यार की दस्तक,
मेरे दिल के दरवाज़े पर। 
मैंने कह दिया ना तुमसे,
अब यहाँ कोई नहीं रहता। 

"नए सवेरे.."

साथ साथ चलकर अँधेरे के,
मिलेंगें नए सवेरे रौशनी के। 
सलामत रखना मेरे हौसले को,
कई फ़र्ज़ निभाने हैं ज़िन्दगी के। 

कुछ पंक्तियाँ

[१]
बनावटी रोशनियों की चकाचोंध में,
कुछ भी दिखाई नहीं देता। 
प्रेम का एक ही दीप काफी है,
उम्र भर रौशनी देने के लिए। 
[२]
ज़रा सा वक्त ही तो माँगा था, 
तुमसे अपने लिए,
तुम मुझे कारोबार के, 
नफा नुक्सान बताने लगे। 
[३]
अब डिजिटल हो गईं,
सारी शुभकामनाएं। 
अपनों की आवाज़ सुने,
एक ज़माना हो गया। 

Monday, November 1, 2021

"आंसू और कांधा.."

खुद ही रखना पड़ता है ख्याल अपना। 
आंसू भी अपने और कांधा भी अपना। 

"सौ करोड़ का जश्न.."

सौ करोड़ का जश्न मनाएं कैसे।
अश्रुधारा निरंतर बह रही,
खुशियां मनाएं कैसे।
इस महामारी के काल में,
बिछुड गए जो मेरे अपने,
उन्हें वापस लाएं कैसे।
विधि का विधान यही,
खुद को समझाएं कैसे।
सौ करोड़ की खुशी में,
देश हो रहा जगमग रोशन।
इस बनावटी रोशनी में,
खुशियां मनाएं कैसे।
घरों में हो गया अंधेरा,
जिनके हमेशा के लिए।
वो अपने आंगन में,
अब दीप जलाएं कैसे।
सौ करोड़ का जश्न मनाएं कैसे।
खोया है जिन्होंने अपनों को,
सहमे रहते हैं उस घर के लोग।
बंद हैं दरवाजे घर के,
उन्हें बाहर बुलाएं कैसे।
खुशियों के गुलदस्ते,
उनके घर दे आएं कैसे।
चाहकर भी "शलभ",
उन्हें आवाज़ लगाए कैसे।
उम्र भर के लिए हो गई,
अमावस जिनकी ज़िंदगी में,
वो अब दीवाली मनाएं कैसे।
सौ करोड़ का जश्न मनाएं कैसे।