I am Shalabh Gupta from India. Poem writing is my passion. I think, these poems are few pages of my autobiography. My poems are my best friends.
Friday, December 31, 2010
"ऐ- लहरों , हौले-हौले आना ज़रा .."
ऐ- लहरों , हौले-हौले आना ज़रा ।
समुन्दर किनारे घर है मेरा ।
यूँ तो तूफानों से मैं डरता नहीं ।
रेत के घरौंदे अब मैं बनाता नहीं ।
फिर भी, तुम ख्याल रखना ज़रा ।
ऐ- लहरों , हौले-हौले आना ज़रा ।
अजनबी शहर में, कोई नहीं अपना मेरा ।
दिल की बात , तुमसे कहनी है ज़रा ।
बरसों पहले खो गया था एक "मोती" मेरा ।
होंगे लाखों मोती इस समुन्दर में ,
ढूँढना है मुझको , बस वही "मोती" मेरा ।
ऐ- लहरों , हौले-हौले आना ज़रा ।
दिल की बातों को समझो ज़रा ।
समुन्दर से आती हवाओं ने ,
कल रात बताया है मुझे सपनों में ,
बस यहीं मिलेगा "मोती" मेरा ।
ऐ- लहरों, मेरा साथ देना ज़रा ।
ढूँढ कर लाना है, बस वही "मोती" मेरा ।
ऐ- लहरों , हौले-हौले आना ज़रा ।
Wednesday, December 29, 2010
"वैसे तो सब ठीक है यहाँ ..."
रोज हल करता हूँ कई सवाल मगर,
ज़िन्दगी हर रोज,
एक नया सवाल लेकर आती है ।
वैसे तो सब ठीक है यहाँ ,
परदेस में मगर नींद नहीं आती है ।
आखों ही आखों में रात गुज़र जाती है ।
ज़िन्दगी हर रोज,
एक नया सवाल लेकर आती है ।
बच्चे पूछते हैं - "कब आओगे पापा ?"
आखें मेरी भर आती हैं ।
ज़िन्दगी हर रोज,
एक नया सवाल लेकर आती है ।
ज़िन्दगी हर रोज,
एक नया सवाल लेकर आती है ।
वैसे तो सब ठीक है यहाँ ,
परदेस में मगर नींद नहीं आती है ।
आखों ही आखों में रात गुज़र जाती है ।
ज़िन्दगी हर रोज,
एक नया सवाल लेकर आती है ।
बच्चे पूछते हैं - "कब आओगे पापा ?"
आखें मेरी भर आती हैं ।
ज़िन्दगी हर रोज,
एक नया सवाल लेकर आती है ।
Saturday, December 25, 2010
"कल शाम समुन्दर से मुलाकात हो गयी ...."
कल शाम समुन्दर से मुलाकात हो गयी,
अजनबी थे हम उसके लिए मगर
कुछ देर में जान पहचान हो गयी,
आखों ही आखों में दिल की बात हो गयी।
एक समुन्दर था मेरी नजरों के सामने,
एक समुन्दर मेरी आखों में था ।
वो भी छलक जाता था लहर बन के ,
आखें भी छलक जाती थी याद बन के ।
कल शाम समुन्दर से मुलाकात ही गयी ......
शांत था बहुत समुन्दर, बस शोर हवाओं का था ।
मेरे लौटने का इन्तजार , किसी को आज भी था ।
लहरों का दर्द हम खूब समझते हैं ,
हर लहर की किस्मत में किनारा नहीं होता ।
कल शाम समुन्दर से मुलाकात ही गयी ......
खामोश है समुन्दर, मगर भवंर बहुत हैं ।
एक छोटा सा दिल ही तो है हमारा ,
पत्थरों पर चोट से पत्थर भी टूटते बहुत हैं ।
घर लौटते पंछी , घर लौटता सूरज ...
किनारे से घर लौटते हुए हजारों कदम ......
इन कदमों में मगर, मेरे कदम नहीं थे ।
कल शाम समुन्दर से मुलाकात ही गयी ।
Monday, December 20, 2010
"हर साँस मेरी , एक ऐसी कहानी लिख रही ..."
यात्रा अनवरत चल रही,
जीवन वृतान्त कह रही।
संकरा हुआ रास्ता हर मोड़ पर,
कदमों की गति निरंतर,
मंजिल की ओर बढ़ रही।
यात्रा अनवरत चल रही,
जीवन वृतान्त कह रही।
जीवन की मेरी गलतियाँ,
मेरा संबल बन रहीं।
मेरे पैरों के छालों को,
अब धरती भी अनुभव कर रही।
रास्ते की हर ठोकर,
"राज" को और भी निखार रही।
याद रहेगी दुनिया को सदियों तक,
हर साँस मेरी ,
एक ऐसी कहानी लिख रही।
यात्रा अनवरत चल रही,
जीवन वृतान्त कह रही।
जीवन वृतान्त कह रही।
Sunday, December 19, 2010
"तमाम उम्र याद आऊंगा ..."
महकता सा एक अहसास हूँ अपनेपन का ,
हौले-हौले दिल में उतर जाऊँगा ।
भीड़ है बहुत, पकड़ कर चलो हाथ मेरा,
बिछुड़ गया अगर, तमाम उम्र याद आऊंगा ।
हौले-हौले दिल में उतर जाऊँगा ।
भीड़ है बहुत, पकड़ कर चलो हाथ मेरा,
बिछुड़ गया अगर, तमाम उम्र याद आऊंगा ।
"बच्चों का मन रूठ गया ..."
घर पीछे छूट गया,
बच्चों का मन रूठ गया ।
छज्जे से बच्चों का ,
बार-बार देखना मुझे,
पलकें मेरी भिगो गया ।
बच्चों का मन रूठ गया ।
छज्जे से बच्चों का ,
बार-बार देखना मुझे,
पलकें मेरी भिगो गया ।
Tuesday, December 14, 2010
"मेरा अनुग्रह तुम्हें स्वीकार करना ही होगा"
मेरी प्रिय "मंजरी",
मेरा अनुग्रह तुम्हें स्वीकार करना ही होगा।
अब तुम्हें खिलना ही होगा।
मेरे घर के आंगन में,
"तुलसी" का पौधा बनना ही होगा।
ना जाने कैसे अपने आप,
बिन बुलाये मेहमान की तरह,
काटों से भरे ये जिद्दी पौधे,
उग आते हैं मेरे घर में,
लहुलुहान कर देते हैं हाथ मेरे,
रोज़ ही हटाता हूँ उन पौधों को,
मगर अगले दिन,
और भी ज़्यादा उग आतें हैं ।
और अब तो,
मेरे मन को भी चुभने लगे हैं।
हर जगह दिखाई देने लगे हैं।
जीवन कष्टों में ही बीत गया,
वक्त, सचमुच मुझसे जीत गया।
कुछ पल खुशियों के अब देने ही होंगें।
उम्र भर "तपती रही" ज़िन्दगी को,
अब "तपोवन" बनना ही होगा।
मेरी प्रिय "मंजरी",
इसीलिए,
मेरा अनुग्रह तुम्हें स्वीकार करना ही होगा।
अब तुम्हें खिलना ही होगा।
मेरे घर के आंगन में,
"तुलसी" का पौधा बनना ही होगा।
मेरे घर के आंगन में,
"तुलसी" का पौधा बनना ही होगा।
Monday, December 13, 2010
"एक सूर्योदय , फिर नयी शुरुआत है । "
घना अँधेरा और बड़ी लम्बी रात है ।
चलो, अब कुछ लम्हों की ही तो बात है ।
खत्म हो जायेगी यह काली रात ,
एक सूर्योदय , फिर नयी शुरुआत है ।
चलो, अब कुछ लम्हों की ही तो बात है ।
खत्म हो जायेगी यह काली रात ,
एक सूर्योदय , फिर नयी शुरुआत है ।
Saturday, December 11, 2010
"मेरे लिए तो वह पल, शताब्दी बनकर ठहर गया वहीं .."
ढूंढ़ता हूँ बहुत, मगर मिलता ही नहीं ।
चाँद मेरे आसमान का खो गया कहीं ।
पथरा गई हैं निगाहें कर-कर के इंतज़ार,
मेरी छत की मुंडेर पर ,
अब कोई काग भी बोलता नहीं।
ढूंढ़ता हूँ बहुत, मगर मिलता ही नहीं ।
वो जाते हुए आपका मुड़कर देखना मुझे।
यूँ तो आपके भीगे नैनो ने कह दिया था बहुत।
फिर भी कुछ बातें थी ख़ास, जो दिल में ही रहीं।
ढूंढ़ता हूँ बहुत, मगर मिलता ही नहीं ।
चाँद मेरे आसमान का खो गया कहीं ।
लड़खड़ाते हुए कदम थे आपके,
थम गई थी धड़कने "राज" के दिल की।
जुदा हो रहे थे जब हम तुम,
मेरे लिए तो वह पल,
शताब्दी बनकर ठहर गया वहीं।
ढूंढ़ता हूँ बहुत, मगर मिलता ही नहीं ।
चाँद मेरे आसमान का खो गया कहीं ।
(फोटो : आभार गूगल)
Thursday, December 9, 2010
"एक भी चाँद नहीं मेरे आसमान में।"
होंगें कई चाँद और आसमानों में,
एक भी चाँद नहीं मेरे आसमान में।
कई दिनों से हो रही घनघोर
बरसात आज थम गई है ।
एक भी इन्द्रधनुष नहीं मेरे आसमान में।
होंगें कई चाँद और आसमानों में,
एक भी चाँद नहीं मेरे आसमान में।
उनकी प्यार भरी बातों में आकर ,
दे दिए सारे सितारे भी मैंने।
अब ना चाँदनी है ना रोशनी कोई,
काली स्याह रात है बस मेरे आसमान में।
रेगिस्तान में घर बनाया,
ज़िन्दगी भर दिल को तड़पाया।
कह दो "राज" तुम उनसे जाकर,
बिना नीर के बादल हैं बस मेरे आसमान में।
होंगें कई चाँद और आसमानों में,
एक भी चाँद नहीं मेरे आसमान में।
Tuesday, December 7, 2010
"हिचकियाँ सारी रात आतीं रहीं ..."
कल रात तेरी यादों ने सताया बहुत ,
हिचकियाँ सारी रात आतीं रहीं ,
“राज ” को रुलाया बहुत ।
यूँ तो हवा थी थमी हुई मगर,
उम्मीद का दिया टिमटिमाया बहुत।
बहुत छोटी है जिंदगी की किताब मेरी ,
एक ही पन्ने पर अटकी है साँस मेरी ,
लहू से लिखा है , जिस पर तेरा नाम बहुत।
मिल न सके हम , बिछुड़ना पड़ा हमें ,
किस्मत से ज्यादा शायद ,
पा लिया था मैंने बहुत ।
कल रात तेरी यादो ने सताया बहुत ।
हिचकियाँ सारी रात आतीं रहीं ,
“राज ” को रुलाया बहुत ।
( फोटो -आभार गूगल )
Sunday, December 5, 2010
"क्या इन्हें भी पता चल गया मेरे जाने का ...? "
आजकल,
चिड़ियाँ भी कम नज़र आने लगी हैं ,
मेरी छत की मुंडेर पर ।
क्या इन्हें भी पता चल गया मेरे जाने का ?
चिड़ियों, तुम चिंता मत करना ।
मैंने , बहुत सारे "अनाज के दाने "..
लाकर रख दिये हैं ,
मेरी छत पर बने एक कमरे में ।
घर में सबको कह दिया है,
और अच्छे से सबको समझा भी दिया है ।
मेरे दोनों बच्चे सुबह और शाम ,
छत की मुंडेर पर "दाना" रख दिया करेगें ।
सब कुछ तुम्हारा ही तो है ।
इन "दानों" पर हक़ तुम्हारा है ।
मैं कहीं भी रहूँ ,
तुम कभी चिंता मत करना ।
मेरी छत पर रोजाना ,
इसी तरह आते रहना ।
अपने हिस्से का "दाना",
तुम इसी तरह चुगते रहना ।
Friday, December 3, 2010
"क्या जाना ज़रूरी है पापा ?"
Thursday, December 2, 2010
"एक नये सफ़र की तैयारी है। "
Wednesday, December 1, 2010
"उस शहर में मेरे कुछ दोस्त भी रहते हैं ..."
ज़िन्दगी में बड़ों का आशीर्वाद ,
और सफ़र में घर का बना खाना ,
बहुत काम आता है ।
जब भी निकलता हूँ सफ़र के लिए,
आलू का परांठा और आम का अचार ,
बहुत याद आता है ।
तुम तो सब जानती हो माँ,
बस तुम्ही तो मुझे पहचानती हो माँ,
बेसन के लड्डू बहुत पसंद है मुझे,
इस बार का सफ़र कुछ लम्बा है,
हो सके तो थोड़ी सी मठरी भी बना देना।
इस बार लड्डुओं में ज़रा,
अपनी ममता की चाशनी और मिला देना।
मुझे पता है , आजकल तुम बीमार रहती हो...
घर का खाना भी ठीक से नहीं बना पाती हो।
चाहे लड्डू गोल से ना बने... मगर मैं खा लूँगा...
आपके हाथ से छूकर सारे के सारे लड्डू ,
अपने आप ही स्वादिष्ट हो जायेगें ।
बहुत दूर का है सफ़र,
रास्ते में मेरे बहुत काम आयेगें ।
और माँ , कुछ लड्डू और भी बना देना।
उस शहर में मेरे कुछ दोस्त भी रहते हैं ।
अपनी माँ से वह भी दूर रहते हैं ।
थोड़े उनके लिए भी ,
एक नये डिब्बे में रख देना ।
उनके घर जाकर खिला कर आऊँगा ।
सफ़र शुरू होने में ,
बस थोडा सा ही समय बाकी है ।
घर में सभी से ,
अभी बहुत कुछ कहना बाकी है ।
बच्चों को तो प्यार से समझा दूंगा,
बाकि जो कहना होगा,
चलते वक्त मेरी आखें कह देंगी ।
( शेष अगली कविता में....)
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