Friday, December 31, 2021

"कैलेंडर - 2021"

एक एक करके महीने सारे,
कैलेंडर से जुदा होते रहे।
बिछुड़ने के दर्द को भूलकर,
उसे संभालती रहीं दीवारें।
"इतना ही था साथ हमारा",
खुद को समझती रहीं दीवारें। 
कील की चुभन को फिर भी,
ख़ामोशी से सहती रहीं दीवारें।
दिसम्बर से  गले मिलकर,
आज बहुत रोईं घर की दीवारें।

"Kuch Panktiyan.."

[१] 
उन लम्हों को याद कर के देखते हैं। 
चलो, आज फिर मुस्करा के देखते हैं। 
[२]
रिपोर्ट देखकर, डॉक्टर साब का सिर चकराया है। 
मेरे अल्ट्रा साउंड में, दिल पत्थर का आया है।  


Tuesday, December 21, 2021

"आज भी वही "राजू" हूं मैं.."

दुनिया के लिए "शलभ" हूं मैं,
मगर मां, तुम्हारे लिए तो, 
आज भी वही "राजू" हूं मैं।
यूं तो दोनों नाम मुझे,
तुमने ही तो दिए थे।
आपके और पापा के,
जाने के बाद "राजू",
घर में कहीं गुम हो गया है।
बहुत तलाश किया मैंने,
परन्तु कहीं मिला नहीं।
जीवन की आपा थापी में,
"राजू" कहां लापता हो गया,
किसी को पता ही नहीं चला।
घर की दीवारें को भी,
यह नाम अब याद नहीं।
आज भी मेरे कानों में,
आपकी आवाज गूंजती है।
अक्सर महसूस होता है मुझे,
अभी मुझे आवाज़ देकर,
मां, तुम बुलाओगी मुझे।
बचपन की शैतानियां अब,
घर की जिम्मेदारियों में,
बदल गईं हैं शायद।
यूं तो बड़ा हो गया हूं मैं,
मगर मां, तुम्हारे लिए तो,
आज भी वहीं "राजू" हूं मैं।
चाहे सपने में ही आ जाना,
मां, एक बार फिर से मुझे,
तुम "राजू" कहकर बुलाना।

Wednesday, December 15, 2021

"राजू.."

दुनिया के लिए "शलभ" हूं मैं,
मगर मां, तुम्हारे लिए तो, 
आज भी वही "राजू" हूं मैं।
यूं तो दोनों नाम मुझे,
तुमने ही तो दिए थे।
आपके और पापा के,
जाने के बाद "राजू",
घर में कहीं गुम हो गया है।
जीवन की आपा थापी में,
"राजू" कहां लापता हो गया,
किसी को पता ही नहीं चला।
घर की दीवारें को भी,
यह नाम अब याद नहीं।
यूं तो बड़ा हो गया हूं मैं,
मगर मां, तुम्हारे लिए तो,
आज भी वही "राजू" हूं मैं।

Saturday, December 11, 2021

"संदेशा,.."

संदली धूप ने दिया संदेशा,
घने कोहरे के आने का। 
जैसे फिर आया मौसम,
आँखों  के भर आने का।

"नया कारोबार.."

इस शहर में मेरा नया कारोबार है। 
"दर्द" है बेशुबार, "खुशियां" उधार हैं। 

Saturday, December 4, 2021

"ज़िन्दगी के सफर.."

ज़िन्दगी के सफर कुछ इस तरह तय किए। 
दौड़े, गिरे, उठे, संभले और फिर चल दिए। 

"वक्त..."

कुछ इस तरह से,
ज़िन्दगी का सफर,
तय किया  मैंने।  
मुझे रोक कर रखा,
वक्त ने अक्सर,
मगर आज देखो,
वक्त को ही,
रोक दिया मैंने।  

Thursday, December 2, 2021

"मुंबई की बारिश.."

बिलकुल तुम्हारी तरह ही है मुंबई की बारिश,
अब देखो ना, बिन बात के ही बरस जाती है। 
#मुंबई #बारिश 

"गुनगुनी धूप.."

तेरे वास्ते, इश्क़ की गुनगुनी धूप लाया हूँ। 
सुना है, तेरे दिल का मौसम सर्द बहुत है। 

Wednesday, December 1, 2021

"आशीर्वाद.."

कोई तो है मेरे आस पास,
रहता है हमेशा मेरे साथ। 
बचाये रखता है परेशानियों से,
वो है माता पिता का आशीर्वाद। 

Monday, November 29, 2021

"मेरी परछाई.."

भूल भुलैया प्रेम की डगर। 
मेरी परछाई मेरी हमसफ़र। 

"चुनाव.."

टी वी चैनल टमाटर बेचने लगे हैं। 
अपने अपने भाव बताने लगे हैं। 
गैस सब्सिडी फिर मिलेगी जनता को,
शायद चुनाव करीब आने लगे हैं। 

Friday, November 26, 2021

"बातें .."

सब कुछ पहले जैसा ही तो है,
तुम भी हो, हम भी हैं। 
मुलाकातें भी हैं, हाँ मगर अब,
पहले की तरह, वो बातें नहीं हैं। 

"मुलाकात.."

नींद आये तो शायद वो ख्वाब में आएं। 
एक उम्र बीत गई उनसे मुलाकात हुए। 

"बिछुड़ने के पल.."

काम पढ़ा लिखा हूँ मगर,
इतना हिसाब लगा लेता हूँ मैं। 
तुमसे मिलने से ज़्यादा,
बिछुड़ने के पल  पाता हूँ मैं। 

Monday, November 22, 2021

"मरहम"

अब दिल के ज़ख्म कहाँ भरते हैं। 
"मरहम" जैसे लोग कहाँ मिलते हैं। 

Sunday, November 21, 2021

"मील के पत्थर.."

जब हम अपनी राह बनाने  निकले,
ज़िन्दगी जीने के कई बहाने निकले। 
मेरे हौसलों ने बुहारा राह के शूलों को,
मील के पत्थर जाने पहचाने निकले।

"कोरे पन्ने .."

 
रोज़  डायरी लिखता हूँ में,
तुम्हारी यादें तुम्हारी बातें। 
तुम कहते हो कोरे पन्ने हैं सारे,
शायद तुमने गौर से देखा ही नहीं। 
भीगे हैं डायरी के पन्ने सारे,
आंसुओं से बने  हैं शब्द सारे। 

"अंतर्राष्टीय पुरुष दिवस.."

हमारा क्या है साहब,
हम तो बस पुरुष हैं। 
कोई नहीं मनाता हमारा दिन,
हम तो खुद भी नहीं मनाते हैं। 
आप तो सब जानते हैं,
गरीब का कोई दिन नहीं होता। 

(अंतर्राष्टीय पुरुष दिवस पर, 
दिनांक १९ नवम्बर २०२१ को लिखी)

"मेरी महफ़िल में,.."

[१]
बाकी सब कवितायेँ भ्रम हैं,
बस यही कहानी सच है। 
[२]
मेरी महफ़िल में,
तुम्हारी गैर मौजूदगी,
इतना नहीं खलती मुझे। 
मगर जब तुम आ जाती हो,
तब तुम्हारा किसी गैर से बात करना,
सच में, बहुत खलता है मुझे। 

Tuesday, November 16, 2021

"बच्चे.."

धूप, तुलसी, अन्नपूर्णा,
सब हैं घर में। 
जब तक बच्चे,
स्कूल से घर नहीं आते,
"चिंता" ही रहती है,
बस सबके घर में। 

(14 नवंबर, बाल दिवस पर)

"प्यार की दस्तक.."

क्यों देते हो प्यार की दस्तक,
मेरे दिल के दरवाज़े पर। 
मैंने कह दिया ना तुमसे,
अब यहाँ कोई नहीं रहता। 

"नए सवेरे.."

साथ साथ चलकर अँधेरे के,
मिलेंगें नए सवेरे रौशनी के। 
सलामत रखना मेरे हौसले को,
कई फ़र्ज़ निभाने हैं ज़िन्दगी के। 

कुछ पंक्तियाँ

[१]
बनावटी रोशनियों की चकाचोंध में,
कुछ भी दिखाई नहीं देता। 
प्रेम का एक ही दीप काफी है,
उम्र भर रौशनी देने के लिए। 
[२]
ज़रा सा वक्त ही तो माँगा था, 
तुमसे अपने लिए,
तुम मुझे कारोबार के, 
नफा नुक्सान बताने लगे। 
[३]
अब डिजिटल हो गईं,
सारी शुभकामनाएं। 
अपनों की आवाज़ सुने,
एक ज़माना हो गया। 

Monday, November 1, 2021

"आंसू और कांधा.."

खुद ही रखना पड़ता है ख्याल अपना। 
आंसू भी अपने और कांधा भी अपना। 

"सौ करोड़ का जश्न.."

सौ करोड़ का जश्न मनाएं कैसे।
अश्रुधारा निरंतर बह रही,
खुशियां मनाएं कैसे।
इस महामारी के काल में,
बिछुड गए जो मेरे अपने,
उन्हें वापस लाएं कैसे।
विधि का विधान यही,
खुद को समझाएं कैसे।
सौ करोड़ की खुशी में,
देश हो रहा जगमग रोशन।
इस बनावटी रोशनी में,
खुशियां मनाएं कैसे।
घरों में हो गया अंधेरा,
जिनके हमेशा के लिए।
वो अपने आंगन में,
अब दीप जलाएं कैसे।
सौ करोड़ का जश्न मनाएं कैसे।
खोया है जिन्होंने अपनों को,
सहमे रहते हैं उस घर के लोग।
बंद हैं दरवाजे घर के,
उन्हें बाहर बुलाएं कैसे।
खुशियों के गुलदस्ते,
उनके घर दे आएं कैसे।
चाहकर भी "शलभ",
उन्हें आवाज़ लगाए कैसे।
उम्र भर के लिए हो गई,
अमावस जिनकी ज़िंदगी में,
वो अब दीवाली मनाएं कैसे।
सौ करोड़ का जश्न मनाएं कैसे।

Saturday, October 30, 2021

"कुछ पंक्तियाँ .."

[१]
ज़िंदा हूँ, इसीलिए लिखता हूँ। 
लिखता हूँ, तभी तो ज़िंदा हूँ। 
[२]
कुछ घाव ऐसे होते हैं,
जो दिखते भी नहीं हैं। 
जीवन भर कभी मगर,
फिर भरते भी नहीं हैं। 

Wednesday, October 27, 2021

"खुशियां"

क्या ढूंढने आए हो तुम।
चकाचौंध रोशनी से भरे,
इस नकली बाज़ार में।
शायद "खुशियां" !
घर, कार, बाइक, मोबाइल !
बहुत सस्ती होती हैं, यह "खुशियां"।
आजकल किश्तों पर,
मिल जाती हैं बाज़ार में।
मगर बहुत कीमती होते हैं "आंसू",
उनको खरीदना, 
हर किसी के बस की बात नहीं।
किसी का दर्द बांट सको अगर,
किसी की खुशियों की वजह,
अगर तुम बन सको "शलभ",
तो ही तुम सच्चे खरीदार हो।
सच्चे अर्थों में इंसान हो।

Tuesday, October 26, 2021

"चाँद.."

कल बहुत नखरे थे चाँद के,
बहुत देर तक दिखाई दिए नहीं। 
आज तन्हा रह गए आसमान में,
और देखने वाला कोई नहीं। 
(दिनांक : २५ अक्टूबर २०२१, 
करवाचौथ से बाद, रात्रि का चाँद)

"किसी के दिल में.."

फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर पर,
हज़ारों लोग साथ भी हैं तो क्या,
अगर आप किसी के दिल में नहीं हैं,
तो फिर आप कुछ भी नहीं हैं। 

" इश्क़ की गुनगुनी धूप.."

तेरे वास्ते, इश्क़ की गुनगुनी धूप लाया हूँ। 
सुना है, तेरे दिल का मौसम सर्द बहुत है। 

Friday, October 22, 2021

"दरिया.."

दरिया का पानी,
एक दो दिन में उतर जायेगा। 
कुछ आँखों में मगर,
उम्र भर के लिए ठहर जायेगा। 

Tuesday, October 19, 2021

"आंसू.."

कल शाम बारिश से,
कुछ बूँदें उधार ली थी मैंने। 
पथराई आँखों के वास्ते,
उनसे आंसू बना लिए मैंने। 

Monday, October 18, 2021

"सफर.."

ज़िन्दगी में,
बड़ों का आशीर्वाद,
और सफर में,
घर का बना खाना,
बहुत काम आता है। 

"इतवार.."

बारिश तो बहुत है सफर में,
मगर इंद्रधनुष एक भी नहीं।  
इतवार तो बहुत हैं ज़िन्दगी में,
"शलभ" की छुट्टी एक भी नहीं। 

Monday, October 11, 2021

"लोग.."

बहुत खुशनसीब,
होते हैं वो लोग,
जो "घर" में रहते हैं।
ना जाने कैसे, 
जीते हैं वो लोग,
जो "मकानों" में रहते हैं। 

Tuesday, October 5, 2021

"इसी बहाने.."

फेसबुक, व्हाट्सएप , इस्टाग्राम,
आपके डाउन होने का शुक्रिया। 
घर के सदस्यों की एक दूसरे से,
इसी बहाने कुछ देर बात तो हुई। 

Monday, October 4, 2021

"यादों के कारवां.."

शायद, गलत कहते हैं लोग,
कि समय के साथ,
यादें भी धुँधली हो जाती हैं। 
यादों की उम्र तो,
जीवन से भी ज्यादा होती है। 
कुछ बातें कुछ यादें,
उम्र भर साथ रहती हैं। 
कई बार तो कुछ यादें,
कई जन्मों तक साथ निभाती हैं। 
याद भी वो ही आते हैं अक्सर,
तो हमसे बिछुड़ जाते हैं। 
और जब तक मिलते नहीं,
यादों के कारवां संग चलते हैं। 
जन्म जन्मांतर के रिश्ते हैं,
किसी ना किसी जन्म में,
वो लोग फिर ज़रूर मिलते हैं। 
सही कहा ना मैंने, है ना !
(शेष फिर..)

Saturday, October 2, 2021

"रोटी की कविता.."

पिता जी ठीक कहते थे,
कविता से पेट नहीं भरता। 
गोल, चौकोर या तिकोनी,
थोड़ी जली हुई भी चलेगी,
पेट भरता है बस रोटी से। 
भूखे पेट कविता लिखना,
जैसे आग पर चलना। 
कविता चाहे कितनी भी,
अच्छी क्यों ना  लिखी हो। 
खाली पेट कविता "शलभ",
अब अच्छी नहीं लगती। 
ना ही सुनने वाले को,
ना ही सुनाने वाले को। 

Saturday, September 11, 2021

"मुलाकात .."

आप हमसे,
मुलाकात करने की,
बात करते हैं। 
अरे हम तो,
खुद से भी,
बड़ी मुश्किल से,
मिलते हैं।

"दो बातें.."

दो बातें उनसे क्या कर ली मैंने,
सारा शहर अखबार हो गया। 
एक ज़रा से बीमार क्या हुए हम,
सारा शहर तीमारदार हो गया।

याद

यूँ तो सारे शहर ने,
भुला दिया मुझे। 
मेरी हिचकियों में आकर,
फिर कौन याद करता है मुझे। 

इश्क़ का बुखार

इश्क़ का बुखार हो या फिर मौसम का,
जब भी आता है कई दिनों तक रहता है। 

Wednesday, August 18, 2021

"जीना सीख लिया मैंने .."

खुद को समेट कर बैठना सीख लिया मैंने। 
खुश है मेरी चादर, जीना सीख लिया मैंने। 
बनावटी मुस्कान मिली जिन चेहरों पर,
उनके घर पर जाना छोड़ दिया मैंने। 
किनारे बैठे रहने से कुछ नहीं हासिल,
तूफ़ान में कश्ती चलाना सीख लिया मैंने। 
खुद ही बनायेंगें हम, अपने कदमों के निशां,
भीड़ से अलग चलना, अब सीख लिया मैंने। 
खामोश रहूँगा मैं अब, बस  शब्द बोलेंगें मेरे। 
थोड़ा बहुत ही सही, लिखना सीख लिया मैंने।   

Sunday, August 15, 2021

" आदमी.."

अपनी पसंद के कपड़े भी,
कहां पहन पाता है आदमी।
बचपन में मां की पसंद के,,
कॉलेज टाइम में दोस्तों की,
शादी के बाद पत्नी की पसंद,
फिर बच्चों के पसंद की ड्रेस,
और उनकी पसंद के जूते भी, 
पहनता है फिर आदमी।
सबकी खुशी में फिर,
खुश रहता है आदमी।
बस इसी तरह से जीवन,
बिताता है फिर आदमी।

आजकल (3)

रिश्ते और सामान जितने कम होंगें।
ज़िन्दगी के सफ़र उतने आसान होंगें।
देखो बदलने लगा है अब देश मेरा,
खिलाड़ी के नाम से अब अवार्ड होंगें।
जिनको पार्टी में पद मिला है छोटा सा,
उनके ही घर पर नेम प्लेट बड़े होंगें।
सी कमरे छोड़ कर धूप में निकल रहे,
शायद नेता जी के चुनाव करीब होंगें।
हिन्दू मुस्लिम के नाम पर बहुत शोर है मगर,
कचहरी में ज्यादा मुक़दमे भाई भाई के होंगें।
जुदा हुए थे जिस मोड़ पर कभी हम दोनों,
तुम देखना, हम आज भी वहीं ठहरे होंगें।
चाहकर जी भर कभी रो भी ना सके हम,
"शलभ" की आंखों पर कितने पहरे होंगें।

"कुछ रिश्ते .."

स्कूल की किताब में,
संभालकर रखे, 
मोर पंख की तरह,
कुछ रिश्ते आज भी,
संभालकर रखे हैं मैंने। 


Sunday, August 8, 2021

"बिछुड़ते वक्त.."

बिछुड़ते वक्त,
एक नज़र,
जी भर के भी,
ना देख पाए तुमको। 
नैनों  में थे आंसू भरे,
बस धुँधले से,
नज़र आते रहे,
तुम हमको। 

आजकल (2)

अब बरसों से नई तस्वीरें नहीं खिचवाते हम,
यूँ झूठ मूठ का हमसे मुस्कराया नहीं जाता। 
ढूंढ ले ए दिल ज़िन्दगी में अब हमसफ़र कोई,
बारिश के मौसम में अकेले भीगा नहीं जाता। 
वो मैडल जीत कर लाए हैं अपनी मेहनत से,
हर बात का श्रेय सरकार को दिया नहीं जाता। 
खेलों के महाकुम्भ में तुमने लिख दी अमर गाथा,
नीरज के आगे अब किसी का भाला नहीं जाता। 
मुफ्त राशन पाकर भी भूखा रह गया गरीब,
महंगा सिलेंडर उससे अब ख़रीदा नहीं जाता। 
खामोशियाँ भी कह देती हैं बहुत कुछ बातें,
हर बात को नाराज़गी से बताया नहीं जाता। 
कभी कभी मना करना भी ज़रूरी है "शलभ",
यूँ हर किसी की महफ़िल में जाया नहीं जाता। 

Sunday, August 1, 2021

"मेरी सबसे अच्छी मित्र, मेरी कवितायेँ.."

मेरी सबसे अच्छी मित्र,
मेरी कवितायेँ। 
मेरे सुख दुःख की साथी,
मेरी कवितायेँ। 
डायरी में लिखी कुछ अधूरी,
मेरी कवितायेँ। 
नैनों से अश्रु बन झलकती,
मेरी कवितायेँ। 
हर मौसम में संग रहतीं,
मेरी कवितायेँ। 
मेरी सबसे अच्छी मित्र,
मेरी कवितायेँ। 

(अंतर्राष्टीय मित्रता दिवस पर लिखी मेरी कविता)

My poems are my best friends.


"नई तस्वीरें.."

अब नई तस्वीरें नहीं खिचवाते हम,
मेरे चेहरे को अब मुस्कराना नहीं आता। 

"सावन ..."

अब के भी बरसीं हैं बारिशें फिर पहले की तरह,
तन तो भीगा खूब मगर, मन रहा प्यासा मेरा पहले की तरह।
पेड़ों पर लगे सावन के झूलों को खाली ही झुलाते रहे,
उन बारिशों से इन बारिशों तक इंतज़ार हम करते रहे।
वो ना आए इस बार भी मगर पहले की तरह ।
अब के भी बरसीं हैं बारिशें फिर पहले की तरह,
वो साथ नहीं हैं यूँ तो , कोई गम नहीं है मुझको ।
मुस्कराहटें "राज" की नहीं हैं अब मगर पहले की तरह।
यूँ तो कई फूल चमन में, खिल रहे हैं आज भी मगर ।
खुशबू किसी में नहीं है, जो दिल में बस जाए पहले की तरह।
अब के भी बरसीं हैं बारिशें फिर पहले की तरह। 

Monday, July 26, 2021

आजकल (1)

नेता जी घर घर  जाने लगे हैं। 
शायद चुनाव आने लगे हैं। 
साँझ ढले जो छुप गया सूरज,
जुगनू कैसे टिमटिमाने लगे हैं। 
जरा सी बारिश क्या हुई गांव में,
पोखर के मेंढक टर्राने लगे हैं। 
मार देते हैं जहाँ बेटियां कोख में,
अब मीराबाई को बधाई देने लगे हैं। 
महामारी का असर है अब भी,
लोग कैसे बेपरवाह होने लगे हैं। 
बेटे जाकर बस गए विदेश में,
माँ - बाप जल्दी बूढ़े होने लगे हैं। 


Wednesday, July 21, 2021

"दास्ताँ यह लम्बी है बहुत.."

समुन्दर किनारे बैठकर, 
लहरों से बातें की बहुत।
सांझ ढले घर जाता सूरज,
लौटते पंछी याद आये बहुत।
सारी बातें दिल में ही रहीं, 
कहनी थी जो उनसे बहुत।
खुद से करते रहे हम बातें, 
कभी रोये कभी मुस्कराये बहुत।
कालेज के दिन, कैंटीन 
और "दोस्त" याद आये बहुत।
दिल के बागवां से, 
यादों के फूल समेट लाये बहुत।
आज भी आती है, 
उन फूलों से खुशबू बहुत।
तितलियाँ, फूल और यादें, 
मेरे जीने के लिए हैं बहुत।
और क्या कहें अब जाने दो, 
दास्ताँ यह लम्बी है बहुत।

"मेरी कहानियाँ,.."

कल रात समुन्दर बहुत रोया है शायद, 
दोपहर तक किनारे की सारी रेत भीगी हुई थी। 
वो पढने लगे है अब मेरी कहानियाँ, 
दिल के कागज़ पर अब तक जो लिखी हुई थी । 
सुलझने लगी है ज़िन्दगी की पहेलियाँ , 
बरसों से अब तक जो उलझी हुई थी । 
डायरी के पन्नों को लगे हैं हम पलटने, 
एक जमाने से अलमारी में जो रखी हुई थी ।

"इन्द्रधनुष.."

 ऐसा नहीं कि  बूंदों से मुझे प्यार नहीं है।
अब की बारिशों पर मुझे ऐतबार नहीं हैं।
आती हैं घटायें  किसी अजनबी की तरह।
पहले की तरह अब बरसती नहीं हैं।
बूंदों में  अपने पन का अहसास नहीं हैं।
पहले जैसे इन्द्रधनुष  अब बनते नहीं हैं।
ऐसा नहीं कि  बूंदों से मुझे प्यार नहीं है।
अब की बारिशों पर  मुझे ऐतबार नहीं हैं।
बदल गया है वक्त बदल गया ज़माना ,
खुले मन से अब "दोस्त" मिलते नहीं हैं ।
पहले जैसे इन्द्रधनुष अब बनते नहीं हैं ।

"कुछ पंक्तियाँ .."

[१]
ना बारिशें आयीं ना तुम। 
दोनों पक्के झूठे निकले। 

[२]
रिश्ते जितने कम होंगें। 
दर्द उतने कम होंगें। 

[३]
सीख लिया अब मैंने, दर्द को सहन करना। 
नमक के शहर में, ज़ख्मों को खुला रखना।  

[४]
यूँ तो आज भी, उनसे बातें होती हैं। 
मगर इन बातों में, अब वो बातें नहीं होती। 

"मेरी ज़िन्दगी आजकल.."

मेरी ज़िन्दगी आजकल,
बहुत हैरान कर देती है मुझे। 
दो कदम आगे चलता हूँ,
चार कदम पीछे कर देती है मुझे। 
यूँ तो मील के पत्थर भी जानते हैं,
और रास्ते के संकरे मोड़ भी मुझे। 
ना जाने क्यों दूर हो जाती हैं मंजिलें,
फिर शुरू से चलना पड़ता मुझे।  

"मन.."

भरी आखें और बादल,
जब तक बरसते नहीं।
चाहे कुछ भी कर लो,
मन हल्का होता नहीं। 

"तुम्हारी यादें,.."

तुम्हारी यादें,
धुँधली कभी हो ही नहीं सकती। 
मानो , अभी लौटा हूँ तुमसे मिलकर,
बीस साल पहले की तरह। 
समुन्दर किनारे संग तुम्हारे,
तपती रेत पर मीलों चला हूँ मैं। 
वक्त आज भी वहीँ ठहरा है। 
इसीलिए कुछ भूला ही नहीं मैं। 
बारिशों के बाद जैसे इंद्रधनुष ,
बिलकुल साफ़ दिखाई देता है। 
वैसे ही आज भी तुम्हारा चेहरा,
मेरी आखों के सामने रहता है। 
उम्र के साथ अब निगाहें ,
शायद धुँधली हो भी जाएँ,
मगर तुम्हारी यादें,
धुँधली कभी हो ही नहीं सकती। 

"मेरे घर के दरवाज़े पर.."

मसरूफ कर लिया अब खुद तो मैंने, 
विरासत में मिली घर की ज़िम्मेदारियों में।  
घर के सारे कोने भी, बहुत अपनापन रखते हैं। 
खुले रोशनदान, मुझसे अपनी कहानी कहते हैं। 
मेरे कमरे की दीवारें तो, मुझसे बहुत बतियाती हैं। 
थक जाता हूँ जब, मेरा सिरहाना बन जाती हैं। 
घर का मुख्य दरवाज़ा भी मेरी राह देखता है। 
जब तक घर न आऊं, बाहर देखता रहता है। 
आज भी मेरी तलाश में, उसके शहर की हवाएं,
मेरे घर के दरवाज़े पर, दस्तक देने आ जाती हैं। 
अब यहाँ कोई नहीं रहता, जब कहता हूँ मैं। 
पहचान लेती हैं आवाज़ मेरी, मगर लौट जाती हैं। 
(शेष फिर..)

"शिकायत .."

रात तू हमसे कुछ बात तो कर।
दिल की बातों का इज़हार तो कर। 
अभी बहुत देर है सुबह होने में,
ख्वाबों में आने का वादा तो कर। 
रात तू हमसे कुछ बात तो कर।
गुज़रते लम्हों का कुछ ख्याल तो कर। 
देर से आया था आज चाँद मेरी छत पर,
इसकी शिकायत तू आसमां से तो कर। 


Saturday, July 3, 2021

"बारिश बनकर आ जाओ.."

थोड़ी देर के लिए ही सही,
बारिश बनकर आ जाओ,
तुम मेरे आँगन में। 
बरस जाओ,
दिल के हर कोनों में। 
महक जाओ,
घर के सारे बंद कमरों में। 

"अपनों से मिलना बहुत मुश्किल हुआ है.."

पिछली गर्मियों में भी,  घर पर ही रहे। 
ना तो नाना - नानी के घर जा पाए। 
ना ही दादा - दादी से मिल पाए बच्चे। 
इस मई जून का भी, यही हाल हुआ है। 
इस महामारी के कठिन समय में,
अपनों से मिलना बहुत मुश्किल हुआ है। 

"भरम हैं पल भर के.."

पहला प्यार - आखरी प्यार,
अब तो बस भरम  हैं पल भर के। 
ज़रा ज़रा सी बातों में आजकल,
लोग रख देते हैं ब्लॉक कर के। 

"इंतज़ार अभी बाकी है.."

दिन तो बात गया,
पर शाम अभी बाकी है। 
तेरी राह निहारते नैनो में,
इंतज़ार अभी बाकी है। 
मेरी पथराई आँखों में,
कुछ आंसू अभी बाकी हैं। 
तुम ना आये आ आओगे,
पर उम्मीद अभी बाकी है। 


"कुछ दर्द ..."

कुछ दर्द सहना भी,
ज़रूरी है ज़िन्दगी में। 
हर लम्हा ख़ुशी मिले,
यह ज़रूरी तो नहीं। 

"मुझे इश्क़ है तुमसे..."

यूँ तो,
बहुत कुछ तुमसे,
कहना था मुझे। 
मगर,
आज भी नहीं कह पाया। 
मुझे इश्क़ है तुमसे,
बस कविता में ही लिख पाया। 
और वो कविता भी आज तक,
तुमको सुना नहीं पाया। 

"वो लम्हा जी कर देखना है.."

तुम्हें छूकर देखना है। 
वो लम्हा जी कर देखना है। 
उस लम्हें में सारा जीवन,
कई बार जी कर देखना है। 

"कुछ पंक्तियाँ ...."

[१]
धीरे धीरे मेरे दिल से, अब बहुत दूर हो गए हैं। 
शहर के अपने कुछ लोग, अब अजनबी हो गए हैं। 
[२]
कुछ लम्हों को यादगार करके देखते हैं। 
चलो आज, हम भी मुस्करा देखते हैं। 
[३]
पुरानी  बातों को, भूलाकर देखते हैं। 
चलो आज फिर मुस्कराकर देखते हैं। 


Sunday, June 6, 2021

"आपके जन्मदिन पर, क्या उपहार दूं आपको.."

प्रातः काल की पहली किरणों से शुरू हुआ,
जन्मदिन की शुभकामनाओं का आगमन।
प्रसन्नता से प्रफुल्लित हृदय का अन्तःकरण,
6 जून की सुबह से, सुगंधित घर का आंगन।
अरब सागर के किनारे हवा के ठंडे झोके,
आपको बधाई संदेश प्रेषित कर रहे हैं।
आसमां में उड़ते पंछी भी आपके लिए,
सुबह से ही "हैप्पी बर्थडे" गुनगुना रहे हैं।
खुशी का उत्सव सा है आज फिज़ाओं में,
अपनों के फोन, सुबह से ही आ रहे हैं।
मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा हो या चर्च,
सब जगह से आपको आशीर्वाद मिल रहे हैं।
हर बार की तरह, गिफ्ट कोई नहीं लाया हूं।
आपकी तरह, ग्रीटिंग कार्ड् भी नहीं बना पाया हूं।
आपके जन्मदिन पर, क्या उपहार दूं आपको ?
कुछ शब्दों को जोड़कर, बस यह कविता लिख पाया हूं।
@ शलभ गुप्ता

"पथराई आंखों में ठहरी, बिछुड़ने की निशानियां हैं.."

यूं तो जून का महीना हर साल ही आता है,
मगर, इस बार मुझे ऐसा महसूस हुआ,
जैसे बरसों बाद, यह महीना आया है।
विश्व और देश पर आए इस कठिन समय में,
खुद को जीवित रखना, बहुत बड़ी चुनौती है।
कई अपने लोग, बहुत दूर चले गए हैं।
उनकी यादें ही अब हमारी धरोहर हैं।
यूं तो हर साल बारिशें आती हैं इसी महीने,
मेरे "जन्मदिन" की खुशियां और बधाइयां लेकर।
मेरे घर में भी कुछ परेशानियां आई थीं,
जब यह महामारी घर में मिलने आई थी।
थर्मामीटर और आक्सिमीटर बने शस्त्र,
कुछ दवाइयों बनी संजीवनी बूटी,
आप सबकी दुआओं ने भी तो बहुत असर किया।
फिर सबने मिलकर, कोरोना से युद्ध जीत लिया।
मगर इस बार की खुशियों में बहुत उदासियां हैं।
पथराई आंखों में ठहरी, बिछुड़ने की निशानियां हैं।
किसी की भी एक कॉल, चिंता बढ़ा जाती थी।
"सब ठीक है यहां", सुनकर ही तसल्ली आती थी।
सरकारी आंकड़ों से तो लगता है कि अब,
धीरे - धीरे सब कुछ ठीक होने सा लगा है।
ठहरा सा जीवन, एक दो कदम चलने लगा है।
इस बार तो, बड़ी लम्बी दूरी तय की है रात ने..
बहुत दूर आसमां में कुछ उजाला होने को है।
अपनों से मिलने के मौसम फिर आने वाले हैं।
उदास लम्हें, अब बहुत दूर जाने वाले हैं।
प्रभु, हम सब पर अपना आशीर्वाद सदैव बनाए रखना।
जीवन के कठिन पलों में भी जीना सिखाते रहना।
हम इंसान, एक दूसरे के दर्द को महसूस कर सकें,
हम सभी को, इतनी ज़रूर समझ देना।
© शलभ गुप्ता

Tuesday, March 9, 2021

धीरे धीरे अब तुम्हें भूलना चाहता हूँ ....

यूँ तो तुम्हारे लिखे हुए सारे खत,
और दिए हुए ग्रीटिंग कार्ड्स,
आज भी संभालकर रखे हैं मैंने।
लेकिन कभी कभी लगता है मुझे,
मेरे बाद कौन संभालेगा इन धरोहरों को। 
इसीलिए अब, पता भेज दो अपना। 
तुम्हें सब वापस लौटाना चाहता हूँ,
धीरे धीरे अब तुम्हें भूलना चाहता हूँ। 
© शलभ गुप्ता 

"दर्द" है बेशुमार..

 इस शहर में मेरा नया कारोबार है। 
"दर्द" है बेशुमार , "खुशियां" उधार हैं। 
© शलभ गुप्ता 

Monday, March 1, 2021

"कोरे पन्ने"

डायरी के कोरे पन्नों ने आज कहा मुझसे,
"शलभ" बहुत दिन हुये कविता लिखे हुये।