Wednesday, May 16, 2018

"इन बारिशों के मौसम में..."

तुम भीगना इस बार बारिशों में,
मुझे नहीं भीगना है। 
मुझे तो ढेर सारे पौधे लगाने हैं ,
इन बारिशों के मौसम में। 
रंग-बिरंगे गमलों में ,
सफ़ेद फूलों के पौधे। 
जो तुम्हे बहुत पसंद थे। 
यूँ तो कोई खुशबू नहीं थी उनमें,
मगर तुम्हारे छूने से महक जाते थे।
आ जाना फिर एक बार,
फूलों को छूने के लिए ,
आँगन को महकाने के लिए। 

@ शलभ गुप्ता

Saturday, May 12, 2018

"धूप ..'

चाहे कितने बंद कर लो दरवाजे सारे।
सुबह होने पर फिर आयेगा सूरज,
धूप को हौले-हौले घर में आना ही है।
ज़िन्दगी को फिर से मुस्कराना ही है। 
@ शलभ गुप्ता


Wednesday, May 9, 2018

"चिड़ियों, मैं कहीं भी रहूँ ..."













चिड़ियों, मैं कहीं भी रहूँ ,
तुम कभी चिंता मत करना ।
मेरे बच्चे सुबह और शाम ,
छत पर "दाना" रख दिया करेगें ।
सब कुछ तुम्हारा ही तो है ।
इन "दानों" पर हक़ तुम्हारा है ।
तुम कभी चिंता मत करना ।
मेरी छत पर रोजाना ,
इसी तरह आते रहना ।
अपने हिस्से का "दाना",
तुम इसी तरह चुगते रहना ।

@ शलभ गुप्ता 

"कुछ फूल..."

कुछ फूल यादों के,
मोहब्बत की राहों में।
सारे जवाब मिल गये,
उनकी नम आँखों में।

@ शलभ गुप्ता




















( अपने मोबाइल द्वारा ली गयी ये तस्वीर )