Monday, November 30, 2009

"मंजिल चाहे कितनी भी दूर सही .... "

मंजिल चाहे कितनी भी दूर सही ....
क़दमों पर अपने , बस भरोसा होना चाहिए।

ठहरे हुए पानी में क्या मज़ा आएगा,
तैरने के लिए , समुन्दर में तूफान चाहिए।
चलते रहना है निरंतर , ना रुकना है कभी ..
भीड़ से अलग, पद-चिन्ह अपने बनाना चाहिए।

Wednesday, November 18, 2009

"तन तो है मिटटी का ......."

तन तो है मिट्टी का,
चाहे कोई भी ले ले ।
मन तो जिसका होना था ,
अब तो हो गया ।
बना दिया मीरा मुझे,
और मन "घनश्याम" हो गया।
कुछ नहीं रहा अब पास मेरे,
जिसको ले जाना था,
वो सब ले गया।
बना दिया मीरा मुझे,
और मन "घनश्याम" हो गया।

Sunday, November 15, 2009

"आप माने या ना माने , मगर सच कहता हूँ मैं ..."

कम पढ़ा लिखा हूँ मगर, इतना हिसाब लगा लेता हूँ मैं।
मिलने से ज़्यादा आपसे , बिछुड़ने के पल पाता हूँ मैं।
आप माने या ना माने , मगर सच कहता हूँ मैं।
वक्त ने दूर कर दिया , मुझको आपसे मगर......
हमेशा आपको अपने ही करीब पाता हूँ मैं।
आप माने या ना माने , मगर सच कहता हूँ मैं।
अब कोई नहीं आवाज़ देगा और बुलाएगा मुझको,
फिर भी हर आहट पर चौंक जाता हूँ मैं ।
आप माने या ना माने , मगर सच कहता हूँ मैं।

Friday, November 13, 2009

"हमें हर हाल में मुस्कराना है ....."

"जख्म कितना भी गहरा सही,
दर्द तो बस छुपाना है।
हमें हर हाल में मुस्कराना है ।
वक्त , हर समय नहीं रहता एक सा....
हर मौसम आना - जाना है।
हमें हर हाल में मुस्कराना है ।
निराश होने से कुछ नहीं हासिल,
जो सह गया काटों की चुभन को,
"गुलशन" उसका हो जाना है।
हमें हर हाल में मुस्कराना है ।"

Monday, November 9, 2009

"कुछ दूर तलक साथ चलो, भूल कर शिकवे-गिले।"



"कुछ कह रहे हैं हमसे.....
काटों संग यह फूल खिले ।
कुछ दूर तलक साथ चलो,
भूल कर शिकवे-गिले।
जब साथ चलोगे,
तो कुछ बात भी होगी।
दूर है बहुत मंजिल ,
राह आसान भी होगी ।
धीरे-धीरे मिट ही जायेंगे,
मन के यह फासले ....
कुछ दूर तलक साथ चलो,
भूल कर शिकवे-गिले।

Saturday, November 7, 2009

"शब्दों में जिनके कोई भाव नहीं हैं......."

"शब्दों में जिनके कोई भाव नहीं हैं, जीने की उन्हें कोई आस नहीं है।
गुमनाम ही चले जाते हैं यह लोग, दुनिया में इनका होता कोई नाम नहीं है।
इनके लिए बस एक "रस्म" है , किसी से रिश्तों को निभाना ...
बनावटी मुस्कराहटों से मगर , हकीकत छुपती नहीं है।
शब्दों में जिनके कोई भाव नहीं हैं.......
महफिलों में भी अकेले रह जाते हैं यह लोग,
खुले दिल से कभी यह लोग किसी से मिलते नहीं हैं।
हाशियाँ बन कर रह जाते है यह लोग,
"किंतु-परन्तु" से जिंदगानियां चलती नहीं हैं।
शब्दों में जिनके कोई भाव नहीं हैं.......

Friday, November 6, 2009

"दिल से दिल को जोड़ना चाहता हूँ मैं ...."

दिल से दिल को जोड़ना चाहता हूँ मैं,
समुन्दर में रास्ता बनाना चाहता हूँ मैं ।
किनारे पर लहरों से बातें की बहुत दिन,
अब तूफानों से टकराना चाहता हूँ मैं।
दिल से दिल को जोड़ना चाहता हूँ मैं ......
छुप-छुप कर देख लिया अब बहुत दिन,
अब उन्हें छू कर देखना चाहता हूँ मैं।
यूँ तो रोज़ मेरे ख्वाबों में आते हैं वो ....
अब उनके ख्वाबों में आना चाहता हूँ मैं।
दिल से दिल को जोड़ना चाहता हूँ मैं .......
छोटी सी उम्र में दुश्मन बना लिए बहुत,
अब एक दोस्त बनाना चाहता हूँ मैं।
कवितायें तो बहुत लिखी हैं मैंने,
अब एक दास्ताँ लिखना चाहता हूँ मैं।
दिल से दिल को जोड़ना चाहता हूँ मैं ......

Monday, November 2, 2009

"कई बार दिल ने चाहा है , सारे बंधनों को तोड़ना ...."

कई बार दिल ने चाहा है , सारे बंधनों को तोड़ना ....
किंतु, वक्त की बेड़ियों में जकडा हुआ हूँ मैं ...
तोड़ नहीं पाया , प्रयास किए कई बार ...
निष्फल रहे मगर हर बार ...
कई बार दिल ने चाहा है , सारे बंधनों को तोड़ना ....
तन के बंधन से गहरे हैं , भावों के बंधन....
मन से मन हैं आज भी बंधे हुए....
यह और बात है जमाना हुआ उनसे मिले हुए॥
कई बार दिल ने चाहा है , सारे बंधनों को तोड़ना ....
मैं तोड़ता, तो तुम भी आ जाते तोड़ कर सारे बंधन॥
परन्तु यह सम्भव हो ना सका ,
दो सामानांतर रेखाओं की तरह ,
गुज़र रहा जीवन हमारा , कभी ना मिलने की लिए .......
कई बार दिल ने चाहा है , सारे बंधनों को तोड़ना ....