Monday, May 30, 2011

"एक पल में कई ज़िन्दगी जी जाऊं मैं.."

"किसी की पथराई आँखों के लिए ,
ख़ुशी का "एक आंसू" बन जाऊं मैं ।
चाहे अगले ही पल बह जाऊं।
एक पल में कई ज़िन्दगी जी जाऊं मैं ।
चाहे अगले ही पल फ़ना हो जाऊं मैं ।
यूँ ही गुज़र रही है ज़िन्दगी,
किसी काम आ जाऊं मैं ।
एक तारा हूँ टूटा हुआ,
किसी की मुराद बन जाऊं मैं।
हालातों की तेज़ तपन में ,
किसी पथिक के लिए ,
शीतल पवन बन जाऊं मैं।
जो समझे मुझे सच्चा दोस्त अपना,
उसके लिए हद से भी गुज़र जाऊं मैं।
यूँ ही गुज़र रही है ज़िन्दगी,
किसी काम आ जाऊं मैं । "

Friday, May 27, 2011

"इस तरह फिर दिल को सज़ा देते हैं...."

"हर किसी को अपना समझ लेते है,
इस तरह फिर दिल को सज़ा देते हैं ,
गलती हम यह बार-बार करते हैं ,
आँखें रोती हैं फिर उम्र भर ,
लब मगर हमेशा मेरे मुस्कराते हैं। "

Saturday, May 14, 2011

"मुझको बहुत रुलाने वाले हैं..."

कुछ बादल आये तो हैं ।
आसमान में छाये तो हैं।
बारिशों के मौसम आने वाले हैं,
मुझको बहुत रुलाने वाले हैं।
क्योकिं ,
बारिशों के मौसम में भीगना,
मुझे यूँ अच्छा लगता है,
हम कितना भी रो लें,
किसी को क्या पता चलता है।

Wednesday, May 11, 2011

"विशाल गगन में उड़ रहा एक पंछी अकेला....."

विशाल गगन में उड़ रहा एक पंछी अकेला ।
शाम होने को आई मगर,
कहाँ करे विश्राम , कोई नहीं उसका बसेरा।
वक्त ने काट दिए "पर" उसके,
होंसलों के परों से उड़ रहा , अब भी वह पंछी अकेला ।
उसके विशाल गगन में , ना सूरज है ना अब चंदा कोई ।
हर तरफ़ है बस अँधेरा ।
कहाँ करे विश्राम , कोई नहीं उसका बसेरा।
उड़ते- उड़ते ना जाने कैसे ,
यह कौन से शहर में आ गया वह ।
यूँ तो लाखों मकान है इस शहर में ,
और आसमान छूती इमारतें भी ।
जिस छत की मुंडेर पर सुकून से वह बैठ सके ,
घर उसके लिए एक भी ऐसा नहीं।
लहुलुहान है जिस्म उसका उड़ते-उड़ते,
लगता नहीं अब शायद ,
इस शहर में वह विश्राम कर पायेगा।
और साँसें इतनी भी बाकी नहीं,
कि वह वापस चला जायेगा।
उड़ते-उड़ते ही वह शायद , अब तो फ़ना हो जायेगा।
फिर यह शहर किसी नए पंछी की तलाश में,
फिर से आसमान में देखने लग जायेगा।

Saturday, May 7, 2011

"तन्हा ही यह सफर तय किया हमने..."

जो मंजिल पर कभी पहुँच नही सकते ,
उन रास्तों पर ही कदम रखे हमने ।
जो पूरे हो नही सकते ,
ख्वाब वही देखे हमने ।
जो हम सुना नही सकते ,
गीत वही लिखे हमने ।
और जब दिल को लगी प्यास ,
ख़ुद के आंसू पीये हमने।
जो मंजिल पर कभी पहुँच नही सकते ,
उन रास्तों पर ही कदम रखे हमने।
खुदा बाँट रहा था जब खुशियाँ लोगों को,
नाम उसमे अपना नही लिखाया हमने ।
चंचल हवाओं ने हाथ पकड़ा तो बहुत था ,
फूलों के चमन में,खुशबुओं का मेला तो बहुत था
फिर भी कुछ गिला नहीं तुझसे मेरी जिंदगी ,
तन्हा ही यह सफर तय किया हमने ।