चर्चगेट से आती हुई,
आखिरी लोकल ट्रेन की तरह,
खाली-खाली सी शाम हो गयी।
शोर मचातीं आतीं लहरें ,
पत्थरों से टकराकर,
गुमनाम हो गयीं।
घर के एक कोने में रखी,
रंग-बिरंगी छतरियाँ भी ;
बारिशों के ना आने से,
परेशान हो गयीं।
मिलना ना होगा जिनसे कभी,
ज़िन्दगी "शलभ" की ,
उसी अजनबी के नाम हो गयी।
@ शलभ गुप्ता "राज"
डायरी के कुछ पन्ने भरे हैं।
कुछ पन्नों के कोने मुड़े हैं,
और बहुत से अभी कोरे हैं।
लिखना है कुछ ख़ास सा।
पहले प्यार के एहसास सा।
अमलतास के फूल ;
मुंबई की बारिशें,
घर लौटते पंछी ,
और ईद के चाँद सा।
लिखना है कुछ ख़ास सा।
@ शलभ गुप्ता
ज़िन्दगी की तेज़ तपन में,
अपनेपन की छाँव मिले।
उम्र के हर मोड़ पर,
ख़ुशियाँ बेमिसाल मिलें।
तितलियों को उड़ने के लिये,
नये- नये आसमान मिलें।
सुख और समृद्धि हमेशा,
आपके घर-आँगन में मिले।
मिलेंगे शायद, फिर किसी दिन;
संग-संग हैं यादों के काफिले।
गीत - कविता लिखते रहें हम,
महकते रहें बातों के सिलसिले।
(शलभ गुप्ता "राज")