Wednesday, August 18, 2021

"जीना सीख लिया मैंने .."

खुद को समेट कर बैठना सीख लिया मैंने। 
खुश है मेरी चादर, जीना सीख लिया मैंने। 
बनावटी मुस्कान मिली जिन चेहरों पर,
उनके घर पर जाना छोड़ दिया मैंने। 
किनारे बैठे रहने से कुछ नहीं हासिल,
तूफ़ान में कश्ती चलाना सीख लिया मैंने। 
खुद ही बनायेंगें हम, अपने कदमों के निशां,
भीड़ से अलग चलना, अब सीख लिया मैंने। 
खामोश रहूँगा मैं अब, बस  शब्द बोलेंगें मेरे। 
थोड़ा बहुत ही सही, लिखना सीख लिया मैंने।   

Sunday, August 15, 2021

" आदमी.."

अपनी पसंद के कपड़े भी,
कहां पहन पाता है आदमी।
बचपन में मां की पसंद के,,
कॉलेज टाइम में दोस्तों की,
शादी के बाद पत्नी की पसंद,
फिर बच्चों के पसंद की ड्रेस,
और उनकी पसंद के जूते भी, 
पहनता है फिर आदमी।
सबकी खुशी में फिर,
खुश रहता है आदमी।
बस इसी तरह से जीवन,
बिताता है फिर आदमी।

आजकल (3)

रिश्ते और सामान जितने कम होंगें।
ज़िन्दगी के सफ़र उतने आसान होंगें।
देखो बदलने लगा है अब देश मेरा,
खिलाड़ी के नाम से अब अवार्ड होंगें।
जिनको पार्टी में पद मिला है छोटा सा,
उनके ही घर पर नेम प्लेट बड़े होंगें।
सी कमरे छोड़ कर धूप में निकल रहे,
शायद नेता जी के चुनाव करीब होंगें।
हिन्दू मुस्लिम के नाम पर बहुत शोर है मगर,
कचहरी में ज्यादा मुक़दमे भाई भाई के होंगें।
जुदा हुए थे जिस मोड़ पर कभी हम दोनों,
तुम देखना, हम आज भी वहीं ठहरे होंगें।
चाहकर जी भर कभी रो भी ना सके हम,
"शलभ" की आंखों पर कितने पहरे होंगें।

"कुछ रिश्ते .."

स्कूल की किताब में,
संभालकर रखे, 
मोर पंख की तरह,
कुछ रिश्ते आज भी,
संभालकर रखे हैं मैंने। 


Sunday, August 8, 2021

"बिछुड़ते वक्त.."

बिछुड़ते वक्त,
एक नज़र,
जी भर के भी,
ना देख पाए तुमको। 
नैनों  में थे आंसू भरे,
बस धुँधले से,
नज़र आते रहे,
तुम हमको। 

आजकल (2)

अब बरसों से नई तस्वीरें नहीं खिचवाते हम,
यूँ झूठ मूठ का हमसे मुस्कराया नहीं जाता। 
ढूंढ ले ए दिल ज़िन्दगी में अब हमसफ़र कोई,
बारिश के मौसम में अकेले भीगा नहीं जाता। 
वो मैडल जीत कर लाए हैं अपनी मेहनत से,
हर बात का श्रेय सरकार को दिया नहीं जाता। 
खेलों के महाकुम्भ में तुमने लिख दी अमर गाथा,
नीरज के आगे अब किसी का भाला नहीं जाता। 
मुफ्त राशन पाकर भी भूखा रह गया गरीब,
महंगा सिलेंडर उससे अब ख़रीदा नहीं जाता। 
खामोशियाँ भी कह देती हैं बहुत कुछ बातें,
हर बात को नाराज़गी से बताया नहीं जाता। 
कभी कभी मना करना भी ज़रूरी है "शलभ",
यूँ हर किसी की महफ़िल में जाया नहीं जाता। 

Sunday, August 1, 2021

"मेरी सबसे अच्छी मित्र, मेरी कवितायेँ.."

मेरी सबसे अच्छी मित्र,
मेरी कवितायेँ। 
मेरे सुख दुःख की साथी,
मेरी कवितायेँ। 
डायरी में लिखी कुछ अधूरी,
मेरी कवितायेँ। 
नैनों से अश्रु बन झलकती,
मेरी कवितायेँ। 
हर मौसम में संग रहतीं,
मेरी कवितायेँ। 
मेरी सबसे अच्छी मित्र,
मेरी कवितायेँ। 

(अंतर्राष्टीय मित्रता दिवस पर लिखी मेरी कविता)

My poems are my best friends.


"नई तस्वीरें.."

अब नई तस्वीरें नहीं खिचवाते हम,
मेरे चेहरे को अब मुस्कराना नहीं आता। 

"सावन ..."

अब के भी बरसीं हैं बारिशें फिर पहले की तरह,
तन तो भीगा खूब मगर, मन रहा प्यासा मेरा पहले की तरह।
पेड़ों पर लगे सावन के झूलों को खाली ही झुलाते रहे,
उन बारिशों से इन बारिशों तक इंतज़ार हम करते रहे।
वो ना आए इस बार भी मगर पहले की तरह ।
अब के भी बरसीं हैं बारिशें फिर पहले की तरह,
वो साथ नहीं हैं यूँ तो , कोई गम नहीं है मुझको ।
मुस्कराहटें "राज" की नहीं हैं अब मगर पहले की तरह।
यूँ तो कई फूल चमन में, खिल रहे हैं आज भी मगर ।
खुशबू किसी में नहीं है, जो दिल में बस जाए पहले की तरह।
अब के भी बरसीं हैं बारिशें फिर पहले की तरह।