Sunday, January 31, 2010

"चाँद कल रात का, वाकई बहुत ख़ास था ..."



चाँद कल रात का, वाकई बहुत ख़ास था।
सांझ ढले से ही मुझको , बस उसका इंतज़ार था।
उससे मिलने की तमन्ना में, दिल बेकरार था।
आंसमा में चमक रहा, मानों आफताब था।
चाँद कल रात का, वाकई बहुत ख़ास था।
छत पर बैठ कर , बतियाँ की ढेर सारी।
आखों ही आखों में गुज़र गयी रात सारी ।
मेरे चाँद का , जुदा सबसे अंदाज़ था।
चाँद कल रात का, वाकई बहुत ख़ास था।
चंद लम्हों में ही, कई जन्मों का साथ था।
चांदनी में उसकी , अपनेपन का अहसास था।
बिछुड़ने के वक्त, आखों में बस मेरी ....
आंसुओं का ही "राज" था।
चाँद कल रात का, वाकई बहुत ख़ास था।

Saturday, January 23, 2010

"हाथों में बांसुरी नहीं, अब सुदर्शन चक्र धरना है ..."



नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जी के जन्म दिवस पर उनकी जीवन गाथा को स्मरण करते हुए उन्हें शत: शत: नमन करता हूँ। जिस आज़ादी के लिए उन्होंने अपने प्राणों की आहुति दी उस आज़ादी की हवा में आज आतंकवाद के काले बादल मंडरा रहें हैं... आम जनता और समाज में दहशत का वातावरण बनता जा रहा है।
अपने ही देश में सभी त्योंहारों और राष्ट्रीय पर्वों को मनाने के लिए भी आम जनता खुद को सुरक्षित महसूस नहीं कर रही है। समाज में परिवर्तन तो सब चाहते हैं लेकिन करे कौन ? सुभाष चन्द्र बोस, भगत सिंह तो हों लेकिन मेरे घर में ना हों ! कौन आगे आये .... इसी सोच को अब हमें बदलना है। किसी को तो आगे आना ही होगा, सबको एक साथ आगे बढ़ना है।
कुछ शब्दों के माध्यम से आज अपनी बात कहने का प्रयास कर रहा हूँ .......
"मौत के डर से सहम गये लोग,
अपने ही घर में ठहर गये लोग।
यह तो धरती है "सुभाष" और "आज़ाद" की,
चंद बम-विस्फोटों से फिर क्यों डर गये लोग ।
क्या घर में रहकर बच गये लोग ?
समय से पहले मर गये लोग ।
घर पर नहीं अब ठहरना है।
नाकाम हुये सब "खादी" और "खाकी",
आतंकवाद से अब जनता को ही लड़ना है।
कुछ कर गुजरने का हौसला मन में रखना है।
फूलों की घाटी में कांटें बो गये लोग,
वक्त ऐसा आया , अपने ही साये से डर गये लोग।
बहादुरी का नया अफसाना लिखना है।
हर युवा को बस "रुखसाना कौसर" बनना है।
जागो और युवाओं आगे बढ़ो ,
कल का भारत तुम्हें बनाना है।
अब इस देश को आतंकवाद से मुक्त कराना है।
अगर "भगत सिंह" और "बिस्मिल" ,
अपने घरों में छुप गये होते ।
हम आज भी गुलामी की जंजीरों में बंधे होते।
घर से अब हमें निकलना है।
देश के दुश्मनों के घर पर अब तिरंगा लहराना है।
हाथों में बांसुरी नहीं, अब सुदर्शन चक्र धरना है।
घर से अब हमें निकलना है... ।

Wednesday, January 20, 2010

"क्योकिं बच्चे नहीं जानते, कि बच्चे क्या होते हैं ? "

कभी कभी उसका स्कूल से देर से,
लौटना मुझे परेशान कर देता है।
ऑफिस के काम में नहीं लगता फिर मन मेरा,
स्कूल के फ़ोन मिलाने लगता हूँ।
सड़क पर आकर फिर बस की राह देखता हूँ।
क्योकिं बच्चे नहीं जानते, कि बच्चे क्या होते हैं ?
अपने वजन से ज्यादा भारी बैग अपने ,
नाजुक कन्धों पर लेकर जब वो बस से उतरता है ।
लपक कर वह बैग मैं , अपने हाथों में ले लेता हूँ।
क्योकिं बच्चे नहीं जानते, कि बच्चे क्या होते हैं ?
पानी की खाली बोतल , और भरा हुआ ...
लंच बॉक्स भी थमा देता है वो मेरे हाथों में।
फिर ऊँगली पकड़कर मेरी साथ-साथ बढता है ।
नन्हे-नन्हे पैरों से बड़े-बड़े कदम चलता है ।
खुश होता है वह कि मैं उसका साथ हूँ।
उससे ज्यादा खुशी मुझे होती है ,
कि वह मेरे साथ है।
क्योकिं बच्चे नहीं जानते, कि बच्चे क्या होते हैं ?
यूँ तो अब टॉफियाँ नहीं खाता हूँ मैं ,
खा लेता हूँ मगर, जब आधी तोड़ कर देता है वह,
क्योकिं बच्चे नहीं जानते, कि बच्चे क्या होते हैं ?
यूँ तो अपना होम-वर्क ख़ुद कर लेता है मगर,
"Math" में जरुरत मेरी महसूस करता है।
तब ऑफिस की लाखों की गुणा-भाग को छोड़कर,
"3" और "2" को जोड़ना अच्छा लगता है ।
क्योकिं बच्चे नहीं जानते, कि बच्चे क्या होते हैं ?

Monday, January 18, 2010

"मुझे बस एक बूँद "ओंस" की बनना है ...."



ना सरोवर, ना नदिया, ना सागर बनना है।
मुझे बस एक बूँद "ओंस" की बनना है ।
मोती बनकर कुछ देर चमकना है।
कुछ पलों में जीवन सारा जीना है।
मुझे बस एक बूँद "ओंस" की बनना है ।
फूलों की पंखुडियां बने या काटें बने बिछोना मेरा ...
जन्म हुआ जहाँ, साँस अंतिम वहीँ लेना है।
परिस्थिति कैसी भी रहे साथ मेरे,
हर स्थिति में, मुझे मुस्कराते हुए जीना है।
मुझे बस एक बूँद "ओंस" की बनना है ।
जिन्होनें रखा मुझे रात भर संभाल कर,
उन सभी के प्रति मुझे आभार व्यक्त करना है।
प्रसन्नचित ह्रदय से स्वागत सूर्य का करना है।
हँसते हुए इस संसार से प्रस्थान करना है।
मुझे बस एक बूँद "ओंस" की बनना है ।

Saturday, January 9, 2010

"मिट्टी के खिलोने......"

"छुपा कर रखी थी बातें सारी।
खिलोने ने कह दी कहानी सारी"
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"मेरी ज़िन्दगी के रंग,
इन्द्रधनुषी नहीं तो क्या,
मटमैले तो हैं ।
पापा के साथ मेले जा रहे बच्चे ,
खुश होते तो हैं।
"बैटरी वाली कार अच्छी नहीं",
मेरे कहने का मतलब,
बच्चे समझते तो हैं।
कार को देखकर मचलने पर,
बड़े ने छोटे को समझाया,
भैया , आगे दुकानें और भी तो हैं।
मेले से खुश होकर लौट रहे ,
मेरे बच्चों के हाथों में ,
बैटरी वाली कार नहीं तो क्या,
मिट्टी के कुछ खिलोने तो हैं।
मेरी ज़िन्दगी के रंग,
इन्द्रधनुषी नहीं तो क्या,
मटमैले तो हैं । "

Monday, January 4, 2010

"उड़ना चाहता हूँ उन्मुक्त मैं आकाश में...."



उड़ना चाहता हूँ उन्मुक्त मैं आकाश में....
ऊँचाइयों पर, पक्षियों की तरह ।
मगर , उड़ नहीं पाता हूँ मैं ....
वक्त ने बाँध दिए हैं पंख मेरे,
ठहर सी गयी है ज़िन्दगी मेरी ,
एक कमरे में सिमट कर
रह गयी है ज़िन्दगी मेरी।
सारे बन्धनों को तोड़ कर उड़ना चाहता हूँ मैं,
ऊँचाइयों पर, पक्षियों की तरह ।
कहना चाहता हूँ बहुत कुछ,
सुनना चाहता हूँ बहुत कुछ।
मगर कुछ बोल नहीं पाता हूँ,
दिल में उठ रहे तूफानों को ,
बड़ी मुश्किल से रोक पाता हूँ मैं।
उड़ना चाहता हूँ उन्मुक्त मैं आकाश में....
ऊँचाइयों पर, पक्षियों की तरह ।
मगर , उड़ नहीं पाता हूँ मैं ....
महसूस कर रहा हूँ आपको अपनी ज़िन्दगी में,
आपसे ढेर सारी बातें करना चाहता हूँ मैं।
सारे बन्धनों को तोड़ कर ,
आपके संग-संग उड़ना चाहता हूँ मैं ।
हाँ , तुमसे दोस्ती करना चाहता हूँ मैं।
इस रिश्ते को एक नाम देना चाहता हूँ मैं।
उड़ना चाहता हूँ उन्मुक्त मैं आकाश में....
ऊँचाइयों पर, पक्षियों की तरह ।

Sunday, January 3, 2010

"कोई किसी को याद नहीं करेगा ...."

कोई किसी को याद नहीं करेगा ,
यह ग़लत कहते है लोग।

ज़िन्दगी भर याद आयेगें ,
मुझे आप सब लोग।

शायद मुझे भी याद करेंगे ,
मेरे जाने के बाद "कुछ" लोग।

जब खामोश हो जाऊंगा मै ,
तब गीत मेरे गुनगुनायेंगे लोग।

चला जाऊंगा इस शहर से जब मै,
मेरे कदमों के निशान ढूढेंगे लोग।

मैं हूँ एक पेड़ चंदन का,
इसलिए मेरे करीब नहीं आते है लोग।

पत्थर पर घिस कर, जब मिट जाऊंगा मै,
तब मुझे माथे पर लगायेंगे लोग।

आसमान से टूटता हुआ तारा हूँ,
एक दिन टूट जाऊंगा मै ।

खुशी बहुत है , इस बात की "राज" को मगर
देखकर मुझे, अपनी मुरादें पूरी कर लेंगे लोग।

Friday, January 1, 2010

"नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ ..."



नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ ।
आशाओं के नये दीप जलायें ।
साकार हो सारी संकल्पनाएँ।
जीवन को सार्थक करके दिखलायें।
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ ।
एक-दूसरे के प्रति जाग्रत हो संवेदनायें ।
प्रेम का सन्देश संसार में फैलायें ।
सुख-दुःख बाटें, मानवता का सच्चा धर्म निभायें ।
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ ।
इतनी शक्ति हमें देना प्रभु ,
कदम हमारे ना कभी डगमगायें ।
विपत्तियों में भी हम सदा मुस्करायें ।
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ ।
पृथ्वी के दर्द को समझे और समझायें ।
पर्यावरण का संतुलन रखें सदा बनायें ।
हर दिन धरा पर सब एक पेड़ लगायें ।
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ ।