Saturday, December 3, 2022

"खिली - खिली धूप.."

जाड़ों की खिली - खिली धूप से,
जी भर के बातें करने दो मुझे। 
रूठ जायेगी सर्द मौसम में फिर,
कई दिन नहीं आयेगी मिलने मुझे। 

Thursday, December 1, 2022

"मेरे हिस्से की धूप.."

चाहे कितना भी घना कोहरा सही, 
मेरे हिस्से की धूप मुझे मिलेगी ही। 

Tuesday, November 29, 2022

"जीवन के खाते.."

मिली हैं किश्तों में, अब मुझको साँसें। 
बहुत हो गईं अब, इस जमाने से बातें। 
संभालकर चलाने हैं, जीवन के खाते। 
खुद से करनी है अब, ढेर सारी  बातें। 

Thursday, November 24, 2022

"ऐ ज़िन्दगी.."

ऐ ज़िन्दगी, अब ज़रा हौले हौले चल। 
बरसों बाद, अब मिले सुकून के पल। 
अभी ठहर, संभल, फिर धीरे धीरे चल। 
बड़े एहतियात से, खर्च करना अब पल। 

Saturday, November 19, 2022

"साँसों की अहमियत..|

धीरे धीरे ही सही, ज़िन्दगी चलने लगी। 
गुनगुनी धूप अब, मन को भाने लगी। 
धड़कनों को मिली, एक नई संजीवनी। 
साँसों की अहमियत, समझ आने लगी। 

Thursday, November 17, 2022

"कुछ लोग..|

खबर होकर भी आजकल,
बेखबर रहते हैं कुछ लोग। 
सचमुच कमाल करते हैं,
मेरे शहर के कुछ लोग। 

Wednesday, November 16, 2022

"बहुत बहुत शुक्रिया.."

दिल "एक",
और डाइट चार्ट,
"तीन" पेज का !
"एक" जीवन में मिला है,
मुझे "दूसरा" जीवन,
ध्यान तो रखना ही है,
बहुत बहुत शुक्रिया !
तुम्हारा ज़िन्दगी !!

"माता पिता की दुआएं..."

 [१]
ठहरती साँसों को नया जीवन मिला है। 
माता पिता की दुआओं का यह सिला है। 

[२]
चलो, अच्छा हुआ,
मोबाइल का साथ,
अब कम हो गया है। 
दवाइओं के डिब्बे ,
के रूप में नया साथ,
मुझे जो मिल गया है। 

" हृदयघात.."

हृदयघात की पीड़ा सहता रहा,
नासमझ फिर भी मैं ठहरा नहीं। 
सबके दर्द को तो जाना अक्सर,
अपने दिल की बात मैं समझा नहीं। 


Saturday, September 3, 2022

प्रिय सितम्बर ..

प्रिय सितम्बर,
कैसे हो तुम।
कहां रहे इतने दिन,
बहुत समय बाद,
मिले हो तुम।
चलो, घर चलो।
चाय साथ पियेंगे,
शिकवे शिकायत,
मिल कर दूर करेंगें।
कुछ कहना तुम बातें,
कुछ हम अपनी कहेंगे।

#poet_shalabh_gupta
#welcome #september 


Tuesday, August 30, 2022

शीर्षक |: "ज़िन्दगी"

 











(दिनांक 27 अगस्त 2022 को, 
हिंदी साप्ताहिक समाचार पत्र,
"भोजपुरी राज्य सन्देश"
में प्रकाशित)
शीर्षक |: "ज़िन्दगी" 

"ज़िन्दगी"

 











(दिनांक 26 अगस्त 2022 को, 
हिंदी समाचार पत्र,
दैनिक युगपक्ष , जैसलमेर
में प्रकाशित)
शीर्षक |: "ज़िन्दगी" 

 


Thursday, August 11, 2022

"रंगमंच" है जिंदगी..

दर्शक भी हम,
कलाकार भी हम। 
ताली बजाने वाले भी हम,
पर्दा गिराने वाले भी हम। 
लाइट वाले भी हम,
साउंड वाले भी हम। 
हमारी लिखी स्क्रिप्ट,
हमें ही सुनाती है जिंदगी। 
एक दिन में,
कई किरदार,
निभाती है जिंदगी,
"रंगमंच" है जिंदगी।   

Thursday, July 14, 2022

"महंगा सिलिंडर.."

मुफ्त राशन पाकर भी,
भूखा रह गया गरीब। 
महंगा सिलिंडर उससे,
अब खरीदा नहीं जाता। 

"इंद्रदेव जी.."

सोच रहा हूँ,
कल सुबह ११ बजे,
बारिश के विषय में,
एक ज्ञापन,
इंद्रदेव जी को,
दे ही दिया जाए। 
हमारे शहर से,
क्या नाराजगी है,
इसका भी तो,
पता किया जाए। 

"कीमत .."

ज़रूरत से ज्यादा समय,
जब कोई किसी को देता है। 
तब समय देने वाला शख्स,
अपनी कीमत खो देता है। 

Friday, July 1, 2022

"पहली बारिश.."

आज,
मौसम का,
पहला,
भीगा हुआ,
अखबार,
घर आया है। 
खैर मकदम !

मेरे शहर  में, 
इस मानसून की पहली बारिश। 

Monday, June 27, 2022

"रेत पर नाम.."

मेरे दिल में,
धड़कता है,
यह शहर तेरा। 
सांझ ढले,
मुझसे मिलने,
समुन्दर किनारे,
आ जाना। 
लहरों ने,
संभालकर रखा है,
आज भी,
रेत पर नाम मेरा।   


Thursday, June 23, 2022

"ज़िन्दगी.."

जिसको,
ठोकर खाकर,
संभलना आ गया।  
समझो उसको,
ज़िन्दगी,
जीना आ गया।  

"अपना कुछ भी नहीं.."

"शरीर" माता पिता का,
"आत्मा" परमात्मा की। 
उपहार में मिले,
पैंट  - शर्ट के,
कपड़े सिलवाकर,
बड़े बेटे द्वारा, 
मेरे लिए,
ऑनलाइन मंगवाए,
नए एक जोड़ी,
जूतों को पहनकर,
बन गए हम बाबू जी। 
अपना कुछ भी नहीं।   

Wednesday, June 8, 2022

"पूरे 27 बरस बाद.."

भवाली, भीमताल यात्रा की बातें और यादें 
इन पंक्तियों में : (5 जून 2022)

आये हो कितने बरस बाद,
इन पहाड़ों ने पूछा मुझसे। 
आया हूँ पूरे 27 बरस बाद,
हिसाब लगाकर कहा उससे। 



"अपनों के गांव में.."

भवाली, भीमताल यात्रा की बातें और यादें 
इन पंक्तियों में : (5 जून 2022)
[१] 
इन पहाड़ों से रिश्ते मेरे बड़े पुराने हैं। 
सफर के रास्ते सारे जाने पहचाने हैं। 
[२]
ज़िन्दगी के सारे गुलाब देकर उसे,
कैक्टस सारे अपने नाम कर लिए। 
[३]
शहर के कोलाहल से दूर, पेड़ों की ठंडी छाँव में। 
चलते चलते आ ही गए हम, अपनों के गांव में।  

Wednesday, May 25, 2022

"बादल से मुलाकात"

कल सफर से वापस घर आते हुए,
राह में एक बादल से मुलाकात हुई। 
अजनबी थे दोनों एक दूजे ले लिए,
धीरे धीरे बातों की शरुआत हुई। 
बादल ने गंभीर होकर कहा मुझसे,
बड़ी टकटकी लगाए देख रहे हो,
पथिक, तुम क्या चाहते हो मुझसे ?
तुम क्या मेरी राह देख रहे हो ?
क्यों मेरा रास्ता रोककर खड़े हो ?
मैंने उससे कहा बड़ी उम्मीद से,
सब यहाँ बहुत याद करते हैं तुम्हें,
कुछ दिन ठहर जाओ मेरे शहर में। 
मेरी बातें सुनकर उसने कहा मुझसे,
मैं तुम्हारी बातों में आने वाला नहीं हूँ,
इतनी जल्दी बरसने वाला नहीं हूँ। 
बहुत जल्दी में था वह बादल शायद,
आकाश में दूर कहीं गम हो गया,
मुझे और धरती को उदास कर गया। 

सर्वाधिकार सुरक्षित : शलभ गुप्ता 
(19 मई 2022 को, हिंदी साप्ताहिक समाचार पत्र 
"रुहेला टाइम्स" मोदी नगर में प्रकाशित)

Saturday, May 21, 2022

"बादलों का साथ.."

इस बार सफर  में ,
बादलों का साथ हैं। 
मिलेगी बारिश राह में,
मन में यही आस है। 

तस्वीर : मेरे मोबाइल की नज़र से। 



Thursday, May 5, 2022

"अमलतास.."

मिल जाते हैं जब भी मुझे,
बैठा लेते हैं अपनी छाँव में। 
करते हैं फिर ढेरों बातें,
वृक्ष यह अमलतास के।  
@ शलभ गुप्ता 
फोटो : 
आज सुबह, मेरे मोबाइल की नज़र से। 


 

Wednesday, May 4, 2022

"चाँद" मेरे

नहीं हुआ दीदार ईद के "चाँद" का। 
"चाँद" मेरे तुम्हीं जल्दी घर आ जाना। 

Friday, April 29, 2022

"अपने रास्ते.."

भीड़ का हिस्सा मत बनो,
भेड़ों की तरह मत चलो। 
अपने रास्ते खुद तय करो,
चलना है तो अकेले चलो। 

Saturday, April 23, 2022

"कलर थीम"

आम आदमी की ज़िन्दगी में,
कहाँ कोई कलर थीम होती है। 
मटमैले रंगों से बनी "शलभ" की,
एक धुँधली सी तस्वीर होती है। 

Tuesday, April 12, 2022

"पलाश.."

ज़िन्दगी के सफर में,
दरख़्त मिल गए पलाश के। 
तुम मिले जैसे मुझे,
लम्हें ख़त्म हुए तलाश के। 


Tuesday, April 5, 2022

"समय.."

मिलना हो मुझसे तो,
समय निकाल कर आना। 
जाने की जल्दी हो तो,
फिर तुम मत आना।  

Thursday, March 31, 2022

"एक तस्वीर.."

ज़िन्दगी की एलबम,
B & W हो गई तो क्या। 
एक तस्वीर आज भी,
संभाल कर रखी है मैंने। 


"कभी कभी.."

कभी कभी,
तन्हाई भी ज़रूरी है,
खुद से खुद की,
बातें करने के लिए।  

Monday, March 28, 2022

"धूप.."

ज़िम्मेदारियाँ,
जीवन की,
कुछ इस तरह,
निभाईं मैंने। 
उसे बैठाकर,
ठंडी छाँव में,
खुद के लिए फिर,
धूप चुन ली मैंने।  

"दर्द .."

हर दर्द के पीछे,
अपने ही हों,
यह ज़रूरी तो नहीं है। 
कई बार,
हम खुद भी,
ज़िम्मेदार होते हैं। 


Tuesday, March 22, 2022

"आँखों का पानी .."

नदिया, पोखर, सागर,
तुम्हारी बातें,
अब हम किससे कहें। 
यहाँ तो,
लोगों की आँखों का,
पानी भी अब कम,
होने लगा है। 
(विश्व जल दिवस पर लिखी कुछ पंक्तियाँ)

Monday, March 21, 2022

"अबीर - गुलाल.."

दूर शहर में रहने वाले बच्चे,
जब त्यौहार पर घर आ जाते हैं। 
मां - पिता के लिए वो लम्हें,
खुशियों के अबीर - गुलाल हो जाते हैं।  

"फूल टेसू के .."

नकली बाजार के, रंग कच्चे सारे,
फूल टेसू के, अब कहाँ खिलते हैं। 
रंग दे जो मन को, इस दुनिया में,
ऐसे लोग हमें, अब कहाँ मिलते हैं। 


Thursday, March 17, 2022

"आज" बस अपना है..

बीत गया जो "कल",
अब वह "सपना" है। 
"कल" तो अजनबी है,
"आज" बस अपना है। 
हर एक पल में जियो,
जी भर कर ज़िन्दगी,
क्या भरोसा कल का,
"आज" बस अपना है।  

"सिलसिला .."

जब से सिलसिला, 
थम गया मुलाकातों का। 
तब से सिलसिला,
बढ़ गया तेरी यादों का। 

Wednesday, March 16, 2022

"यह उन दिनों की बात है.."

यह उन दिनों की बात है,
जब फुर्सत में थी ज़िन्दगी। 
अब तो खुद को देखे हुए,
एक जमाना बीत गया। 

 


Monday, March 14, 2022

"खामोशियाँ .."

मेरे प्रिय,
पतझड़ के मौसम ! 
तुम्हारा,
दिल से शुक्रिया। 
हरे भरे पत्तों में,
वो बात कहाँ,
सूखे पत्ते ही,
तोड़ सके,
मेरी राह की,
खामोशियाँ। 

"स्त्री के मन की बातें.."

आज भी दुनिया में,
कुछ कह नहीं पाती हैं। 
कहाँ सुनी जाती हैं,
स्त्री के मन की बातें। 
एक ही दिन क्यों,
हर दिन है उनका,
भ्रमित कर रहे नारे,
झूठी हैं सब की बातें। 

(विश्व महिला दिवस पर, 
सभी मातृशक्ति को समर्पित) 

Wednesday, March 2, 2022

"फेसबुक.."

तुमसे तो अच्छी है ,
"memory" फेसबुक की। 
आ जाती हैं मुझसे मिलने,
लौट कर एक साल में। 

"मौसम और लोग .."

गलत कहते हैं लोग,
कि मौसम की तरह,
बदल जाते हैं लोग। 
आ जाता है मौसम,
लौट कर  हर साल। 
आते नहीं कभी मगर,
दूर जाने वाले लोग। 

"युद्ध.."

युद्ध हास परिहास का विषय नहीं।
इससे हासिल किसी को कुछ नहीं।
यह दे जाता है खून से भरी सड़कें,
सूनी मांग, अनाथ बच्चे, जिंदा लाशें।
और लोग लिखे रहे इस पर चुटकुले,
यह मुझको कदापि ठीक लगता नहीं।
युद्ध हास परिहास का विषय नहीं।
इससे हासिल किसी को कुछ नहीं।
हमारे देश के बच्चे भी हैं वहां पर,
सरकार उनको सुरक्षित ला रही।
युद्ध कहीं भी होता है अगर "शलभ",
प्रभावित उससे सारी दुनिया हो रही।
युद्ध हास परिहास का विषय नहीं।
इससे हासिल किसी को कुछ नहीं।
रक्त रंजित हो रही यह पावन धरा,
सम्पूर्ण विश्व को परिवार मानते नहीं।
जीत लो देश और दुनिया को तुम,
फिर भी मानवता से ऊपर कुछ नहीं।
युद्ध हास परिहास का विषय नहीं।
इससे हासिल किसी को कुछ नहीं।
© शलभ गुप्ता

Friday, February 25, 2022

"जब से आये हो तुम जीवन में.."

 जीवन की परीक्षा के प्रश्न सारे,
"आउट ऑफ सिलेबस" आते हैं।
जब से आये हो तुम जीवन में,
मुझको सारे उत्तर मिल जाते हैं।
यूं तो कविता तुम लिखती नहीं,
फिर भी घर के कामकाज से,
समय निकालकर पढ़ लेती हो, 
फेसबुक पर मेरी रचनाएं अक्सर।
"वेरी नाइस" के कॉमेंट्स तुम्हारे,
मेरे शब्दों को नए अर्थ दे जाते हैं।
घर की जिम्मेदारियों के चलते,
पर्स मेरा खाली हो जाता है अक्सर।
ना जाने पैसे कहां से आ जाते हैं,
तुम्हारे हाथ धन कुबेर बन जाते हैं।
घर आए हुए रिश्तेदारों का ध्यान,
व्रत, त्योहार, जन्मदिन हो या फिर,
स्कूल से मिला बच्चों का होमवर्क,
घर को संवारने का "मैनेजमेंट",
तुमने मुझ से बेहतर निभाया है।
कभी देर से घर आया तो भी,
खाना तुमने गर्म ही खिलाया है।
प्रभु से है बस यही कामना मेरी,
हमेशा यूं ही साथ चलते रहो मेरे।
परेशानियों के लम्हें तुम्हारी वजह से,
बहुत दूर से होकर गुजर जाते हैं।
यूँ तो बहुत कविताएं लिखता हूँ,
तुम पर कुछ लिखना चाहूँ तो,
मेरे पास शब्द कम पढ़ जाते हैं। 
जब से आये हो तुम जीवन में,
मुझको सारे उत्तर मिल जाते हैं।

(आज हमारी विवाह की वर्षगाँठ हैं, अपनी धर्मपत्नी को समर्पित यह मेरी कविता)


Tuesday, February 22, 2022

"ज़िन्दगी.."

ऐ दरख्तों अपने साये,
मत बिछाओं मेरी राहों में। 
मीलों अभी चलना है मुझे,
ज़िन्दगी की तेज तपन में।    

"दर्द.."

बिन कहे समझ लेते हो,
आँखों को तुम पढ़ लेते हो। 
मुस्कराता हूँ जब मैं बहुत,
मेरे दर्द को समझ लेते हो। 

"अखबार.."

 किसी के यहाँ, 
"समाचार" वाला, 
अखबार आता हो,
तो मुझे बताना।  
मेरे घर तो बस,
"विज्ञापन" वाला,
अखबार आता है।  

"आभासी दुनिया.."

इस डिजिटल इमोजी की,
आभासी दुनिया से निकल कर,
अपने कुछ दोस्तों से,
आज मिल आये हम। 
सच कहूं तो,
बहुत दिन बाद फिर,
खुलकर मुस्कराये हम। 

Monday, February 7, 2022

"स्वर कोकिला.."

"फिर आना देश हमारे,
हमको नए गीत सुनाने"

वाद्य यंत्र सारे गुमसुम हो गए,
कैसे सजाएं धुन आज कोई,
अब कौन गायेगा नए गीत कोई,
उनके दुःख में डूब गया जहां सारा। 
सुरमई आवाज़ खामोश हो गई,
स्वर कोकिला हमसे दूर हो गईं,
चली गईं आज उस जहाँ में वो,
जहाँ से आता नहीं कोई दोबारा।

Friday, February 4, 2022

"जीवन मेरा संवार दो माँ।.."

शब्दों का अतुल भण्डार दो माँ,
लेखनी को नए विचार दो माँ।
इतना मुझ पर उपकार करो माँ।
जीवन मेरा संवार दो माँ।
अनुभूतियों को सार्थक रूप दो माँ।
सृजन को व्यापक स्वरुप दो माँ।
जीवन मेरा संवार दो माँ।
बेरंग शब्दों में रंग भर दो माँ।
शब्दों को नए अर्थ दो माँ।
"शलभ" को नए आयाम दो माँ।
जीवन मेरा संवार दो माँ।
शब्दों का मुझे उपहार दो माँ।
कुछ ऐसा लिखे मेरी लेखनी,
पढ़कर सब निहाल हो जाएँ माँ।
इतना मुझ पर उपकार करो माँ।
जीवन मेरा संवार दो माँ।
(फोटो आभार : गूगल )


Monday, January 31, 2022

"फासले.."

ज़िन्दगी के हर कदम पर,
"शलभ" अकेले ही रहे।
यूँ तो साथ चलते रहे तुम,
दिल में मगर फासले ही रहे।  

"एक कोशिश.."

गिर गए तो क्या, उठ तो सकते हैं। 
उठ गए तो फिर, चल तो सकते हैं। 
हार गए तो क्या, फिर जीत तो सकते हैं।
एक कोशिश करके, देख तो सकते हैं। 

Tuesday, January 25, 2022

"अफसाना.."

बीते लम्हों की यादें सहेजकर,
सारे किस्से बस शायराना लिख। 
ज़िन्दगी के कोरे कागज पर,
खूबसूरत सा अफसाना लिख।  

"कश्ती भंवर से.."

लहरों की भी हम कहाँ सुनते हैं,
बहुत मुश्किल है हमको समझाना। 
निकाल लाते हैं कश्ती भंवर से,
हम जानते हैं तूफानों से टकराना।  

"आसमां तू सच बता.."

आसमां तू सच बता,
दिल की बात मत छुपा,
बता तू तन्हा है कि नहीं। 
लोगों से सुना है मैंने,
होता है जो ऊंचाई पर,
जीता है एकाकी जीवन। 

Friday, January 14, 2022

"चुनाव .."

हम हैं नेता मतलबी,
हम से कुछ ना बोलिये। 
जब चुनाव आये करीब,
हम इधर से उधर हो लिए। 

Tuesday, January 4, 2022

"ना जाने क्यों ?"

ना जाने क्यों ?
छूट जाता है,
अक्सर,
मोबाइल,
बाइक की चाबी,
चश्में का केस,
और,
किसी का साथ,
मेरे हाथों से। 

Monday, January 3, 2022

"कुछ फ़ोन.."

कुछ फ़ोन अब आते नहीं,
कई फ़ोन मैं उठाता नहीं। 
समुन्दर की लहरों पर,
अब घर मैं बनाता नहीं।