Thursday, March 31, 2022

"एक तस्वीर.."

ज़िन्दगी की एलबम,
B & W हो गई तो क्या। 
एक तस्वीर आज भी,
संभाल कर रखी है मैंने। 


"कभी कभी.."

कभी कभी,
तन्हाई भी ज़रूरी है,
खुद से खुद की,
बातें करने के लिए।  

Monday, March 28, 2022

"धूप.."

ज़िम्मेदारियाँ,
जीवन की,
कुछ इस तरह,
निभाईं मैंने। 
उसे बैठाकर,
ठंडी छाँव में,
खुद के लिए फिर,
धूप चुन ली मैंने।  

"दर्द .."

हर दर्द के पीछे,
अपने ही हों,
यह ज़रूरी तो नहीं है। 
कई बार,
हम खुद भी,
ज़िम्मेदार होते हैं। 


Tuesday, March 22, 2022

"आँखों का पानी .."

नदिया, पोखर, सागर,
तुम्हारी बातें,
अब हम किससे कहें। 
यहाँ तो,
लोगों की आँखों का,
पानी भी अब कम,
होने लगा है। 
(विश्व जल दिवस पर लिखी कुछ पंक्तियाँ)

Monday, March 21, 2022

"अबीर - गुलाल.."

दूर शहर में रहने वाले बच्चे,
जब त्यौहार पर घर आ जाते हैं। 
मां - पिता के लिए वो लम्हें,
खुशियों के अबीर - गुलाल हो जाते हैं।  

"फूल टेसू के .."

नकली बाजार के, रंग कच्चे सारे,
फूल टेसू के, अब कहाँ खिलते हैं। 
रंग दे जो मन को, इस दुनिया में,
ऐसे लोग हमें, अब कहाँ मिलते हैं। 


Thursday, March 17, 2022

"आज" बस अपना है..

बीत गया जो "कल",
अब वह "सपना" है। 
"कल" तो अजनबी है,
"आज" बस अपना है। 
हर एक पल में जियो,
जी भर कर ज़िन्दगी,
क्या भरोसा कल का,
"आज" बस अपना है।  

"सिलसिला .."

जब से सिलसिला, 
थम गया मुलाकातों का। 
तब से सिलसिला,
बढ़ गया तेरी यादों का। 

Wednesday, March 16, 2022

"यह उन दिनों की बात है.."

यह उन दिनों की बात है,
जब फुर्सत में थी ज़िन्दगी। 
अब तो खुद को देखे हुए,
एक जमाना बीत गया। 

 


Monday, March 14, 2022

"खामोशियाँ .."

मेरे प्रिय,
पतझड़ के मौसम ! 
तुम्हारा,
दिल से शुक्रिया। 
हरे भरे पत्तों में,
वो बात कहाँ,
सूखे पत्ते ही,
तोड़ सके,
मेरी राह की,
खामोशियाँ। 

"स्त्री के मन की बातें.."

आज भी दुनिया में,
कुछ कह नहीं पाती हैं। 
कहाँ सुनी जाती हैं,
स्त्री के मन की बातें। 
एक ही दिन क्यों,
हर दिन है उनका,
भ्रमित कर रहे नारे,
झूठी हैं सब की बातें। 

(विश्व महिला दिवस पर, 
सभी मातृशक्ति को समर्पित) 

Wednesday, March 2, 2022

"फेसबुक.."

तुमसे तो अच्छी है ,
"memory" फेसबुक की। 
आ जाती हैं मुझसे मिलने,
लौट कर एक साल में। 

"मौसम और लोग .."

गलत कहते हैं लोग,
कि मौसम की तरह,
बदल जाते हैं लोग। 
आ जाता है मौसम,
लौट कर  हर साल। 
आते नहीं कभी मगर,
दूर जाने वाले लोग। 

"युद्ध.."

युद्ध हास परिहास का विषय नहीं।
इससे हासिल किसी को कुछ नहीं।
यह दे जाता है खून से भरी सड़कें,
सूनी मांग, अनाथ बच्चे, जिंदा लाशें।
और लोग लिखे रहे इस पर चुटकुले,
यह मुझको कदापि ठीक लगता नहीं।
युद्ध हास परिहास का विषय नहीं।
इससे हासिल किसी को कुछ नहीं।
हमारे देश के बच्चे भी हैं वहां पर,
सरकार उनको सुरक्षित ला रही।
युद्ध कहीं भी होता है अगर "शलभ",
प्रभावित उससे सारी दुनिया हो रही।
युद्ध हास परिहास का विषय नहीं।
इससे हासिल किसी को कुछ नहीं।
रक्त रंजित हो रही यह पावन धरा,
सम्पूर्ण विश्व को परिवार मानते नहीं।
जीत लो देश और दुनिया को तुम,
फिर भी मानवता से ऊपर कुछ नहीं।
युद्ध हास परिहास का विषय नहीं।
इससे हासिल किसी को कुछ नहीं।
© शलभ गुप्ता