Saturday, May 30, 2009

"शलभ" का तो काम है, फ़ना हो जाना मिट जाना......



जो ख्वाब पूरे हो नहीं सकते,
वो ख्वाब , आप मुझे दिखातें क्यों हैं ?
मुझे तो आदत है खंडहरों में रहने की,
मेरे लिए नया आशियाना आप बनाते क्यों हैं ?
हो गई है आदत अब तन्हाईयों की मुझे,
अपनी महफिल में , आप मुझे बुलाते क्यों हैं ?
जो ख्वाब पूरे हो नहीं सकते,
वो ख्वाब , आप मुझे दिखातें क्यों हैं ?
मंजिल पर जाकर ही रुकना था मुझको मगर,
ज़िन्दगी में मेरी , इतने मोड़ आते ही क्यों हैं ?
"शलभ" का तो काम है, फ़ना हो जाना मिट जाना ।
चंद साँसे बाकी हैं मेरी , आप मुझे अब बचाते क्यों हैं ?
जो ख्वाब पूरे हो नहीं सकते,
वो ख्वाब , आप मुझे दिखातें क्यों हैं ?

"राज सारे दिल के खोल रहा कंगना ..."



आप से हुयी मुलाकात, हकीकत है या सपना।
जब से गये हैं आप हम से मिलकर,
बस तभी से ढूँढ रहे हैं दिल हम अपना।
आपकी ओर से आ रही हवाओं में
अपनेपन का एक प्यारा सा अहसास है।
यह अहसास ही अब मेरे साथ है।
मेरी हिचकियाँ कह रही, याद कर रहा कोई अपना।
जब से गये हैं आप हम से मिलकर,
बस तभी से ढूँढ रहे हैं दिल हम अपना।
रिश्ते पहले बन जाते हैं, जन्म हम बाद में पाते हैं ।
यह पता चला मुझे आपसे मिलकर,
मानों कई जन्मों का रिश्ता हो अपना।
जब से गये हैं आप हम से मिलकर,
बस तभी से ढूँढ रहे हैं दिल हम अपना।
राज सारे दिल के खोल रहा कंगना।
बार-बार एक ही बात कह रहा कंगना।
बस अब मुझे "सजना" के लिए ही है सजना।
जब से गये हैं आप हम से मिलकर,
बस तभी से ढूँढ रहे हैं दिल हम अपना।

"हम भारतीयों के जिस्म पर ही बार-बार आतंकवाद और नस्लवाद के घाव क्यों"



कभी कभी, हमारे विचारों में मतभेद हो सकता है। लेकिन ऑस्ट्रेलिया में भारतीयों पर हो रहे हमलों ने हम सबकी भावनाओं को बहुत आहत किया है। मेरी इस बात से आप सभी सहमत होंगें। ऐसा मेरा विश्वास है।
इस ब्लॉग के माध्यम से हम सभी इस घट्ना का कड़े शब्दों में विरोध करते हैं, और दोषी व्यक्तियों के ख़िलाफ़ सख्त कार्यवाही के लिए ऑस्ट्रेलिया की सरकार से मांग करते हैं।

"हम सब एक हैं, हमे अपने देश और दुनिया में रहने वाले हर भारतीय से प्यार है।" यह संदेश इस ब्लॉग के माध्यम से हमे पूरी दुनिया के हर इंसान तक पहुँचाना है।

हम भारतीयों के जिस्म पर ही बार-बार आतंकवाद और नस्लवाद के घाव क्यों ? आख़िर कब तक हम सहेंगें ? कब तक ....? "दुश्मन को भी क्षमा करने की हमारी संस्कृति" का कब तक यह दुनिया फायदा उठाती रहेगी ? कब तक ....?

जय हिंद !

आपका हमवतन,

शलभ गुप्ता

Wednesday, May 27, 2009

"कुछ कर गुजरने के लिए, मौसम नहीं बस मन चाहियें"



कुछ वर्ष पूर्व , अपने शहर में मुझे डा0 विष्णु कान्त शास्त्री जी के ओजस्वी विचारों को सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था आज जब वो हमारे बीच नहीं हैं पर उनकी यह पंक्तियाँ मुझे हर पल याद रहती हैं।

"हारे नहीं जब हौसले , कम हुए तब फासले।

दूरी कहीं कोई नहीं, केवल समर्पण चाहियें।

कुछ कर गुजरने के लिए, मौसम नहीं बस मन चाहियें।"

शलभ गुप्ता

Tuesday, May 26, 2009

"किसी के मीत कब छूटे नहीं हैं ...."



किसी ने क्या खूब लिखा है दोस्तों.........

"सपने किस नयन के टूटे नहीं हैं।
किसी के मीत कब छूटे नहीं हैं।
अमृत के नाम पर विष पी गया हूँ,
अधर मेरे मगर हुये झूठे नहीं हैं। "


शलभ गुप्ता

Monday, May 25, 2009

"जब से चला हूँ , मंजिल पर नज़र है......"



किसी की लिखी हुई यह दो पंक्तियाँ, मुझे अक्सर याद आती हैं और हमेशा निरंतर चलने के लिए मेरा हौसला बढाती रहतीं हैं।

"जब से चला हूँ , मंजिल पर नज़र है।
मैंने कभी मील का पत्थर नहीं देखा।"

चलते-चलते बशीर बद्र जी का एक शेर याद आ गया है , वह भी आपको सुनाता चलूँ....

"तुम्हारे शहर के सारे दिये तो सो गये लेकिन,
हवा से पूछना दहलीज़ पर ये कौन जलता है। "

आपका ही,
शलभ गुप्ता

"इसी अहसास के साथ हमे ज़िन्दगी को जीना है.."



हमेशा की तरह आपका दिन मंगलमय हो !

शायद किसी ने ठीक ही कहा है,

"बाटों , जीवन प्रवाह है और जो भी जीवंत है उसमे प्रवाह होगा।"

यह बात बिल्कुल सही है जब हम अपने अनुभव ( चाहे कैसे भी हों ), अपने विचार एक दूसरे के साथ share करते है । यह हमारे जीवंत होने का अहसास कराता है। इसी अहसास के साथ हमे ज़िन्दगी को जीना है । अपनी भावनाओं को हमेशा खुले मन से ही व्यक्त करना है।

शलभ गुप्ता

Thursday, May 21, 2009

"मेरे शब्द, आपके शब्दों से बातें करने को तरसते हैं..."



मेरे शब्द, आपके शब्दों से बातें करने को तरसते हैं।
क्योंकि, हम बस सिर्फ़ आप पर ही लिखते हैं।
आपके शब्दों को अधिकार है, ख़फा होने का मगर
ज़रा सी बात की क्यों , इतनी सज़ा देते हैं।
हमे एहसास है अपनी गुस्ताखी का ,
आप तो दुश्मनों को भी माफ़ कर देते हैं।
नाराज़गी का कोई और रास्ता इख्तियार कीजीये
मेरे शब्दों पर ना इतने बंधन लगाईये ,
शब्दों को आज ज़रा दिल खोल कर मिलने दीजीये।

Wednesday, May 20, 2009

" चक्रव्यहू में तो जाना ही होगा......"



You are right sir ji, "Self motivation is the key to success".

यह बात तब और भी जरूरी हो जाती है जब हम अकेलें रहतें हों। सारे decisions ख़ुद ही लेने हों। फिर परिणाम चाहे कुछ भी हो।
Abhimannu भी चक्रव्यहू से निकलने का रास्ता नहीं जानते थे, लेकिन वह फिर भी परिणाम की चिंता किए बिना चक्रव्यहू में गए थे।
किनारे पर बैठ कर तो हम तैरना नहीं सीख सकते हैं, लहरों का सामना तो करना ही होगा। डूब जाने के डर से तो हम कभी तैरना नहीं सीख पायेंगें ।
अगर ज़िन्दगी को सही अर्थों में जीना है तब, इतना risk तो लेना ही होगा। चक्रव्यहू में तो जाना ही होगा।
बस, हौसला नहीं खोना है। हिम्मत नहीं हारनी है। लगातार प्रयास करते रहना है। फिर देखना , एक दिन सफलता जरूर हमारे साथ होगी।

शलभ गुप्ता

Tuesday, May 19, 2009

"सर्वश्रेष्ठ आना अभी बाकी है । "



आज सिर्फ़ दो lines के माध्यम से अपनी बात आपसे कहना चाहता हूँ।
पहली लाईन है :-
"मेरी असफलता मुझे यह बताती है कि मैंने सफलता की कोशिश ठीक प्रकार से नहीं की । "
( यह line मुझे मेरी गलतियों का एहसास कराती रहती है ताकि यह गलतियाँ फिर से ना हों। )
दूसरी लाईन है :-
"सर्वश्रेष्ठ आना अभी बाकी है । "
(यह line मुझे लगातार आगे बढने के लिए प्रेरित करती रहती है )


शलभ गुप्ता

Monday, May 18, 2009

"तेज रफ़्तार और बिना मंजिल का सफर कभी पूरा नहीं होता है"



आईये, कुछ लम्हों के लिए आपको शब्दों की यात्रा पर साथ ले चलें। कभी -कभी, यह कुछ देर की यात्राएँ और छोटी - छोटी बातें उम्र भर के लिए यादगार बन जाती हैं।
मेरे मित्र मुझसे कहते हैं कि तुम Bike तेज क्यों नहीं चलाते हो ? इस पर मैं उनसे कहता हूँ, कि जब Bike तेज चलाने की उम्र थी तब मेरे पास bike नहीं थी और अब जब bike है तो तेज चलाने की उम्र नहीं है।
जीवन में कुछ जिम्मेदारियों का अहसास हमारी गति को control में रखता है। यह जिम्मेदारियां ही हैं जो हमें सही अर्थो में जीना सिखाती हैं। जब हम किसी काम के प्रति जिम्मेदार होंगें, तब ही उस काम को सही दिशा देने में सफल होंगे।
तेज रफ़्तार और बिना मंजिल का सफर कभी पूरा नहीं होता है। इसका मतलब यह नहीं है कि हम अपने जीवन की कार्यशैली की गति को इतना कम कर दें कि हम मंजिल तक पहुँच ही ना पायें।

जीवन में संतुलित गति ही हमारे जीवन को संतुलन में रख पाती है।

विचारों के बादल मेरी धरती पर हमेशा बरसते रहें .........
यह शब्दों की यात्राएँ हमेशा चलती रहें..........

आपका ही,
Shalabh Gupta

Thursday, May 14, 2009

किसी के आंसुओं में डूबी हुई खुशी मुझे नहीं चाहिए .....






शायद सब ठीक कहते हैं, जो जैसा है वैसा ही रहेगा । बस जुड़ते रहिये और मिलते रहिये। लेकिन लोग ऐसे क्यों होते हैं ? यह बात एक शहर की नहीं है हर जगह ऐसा ही हो रहा है।
आज लोग इंसानों को एक वस्तु की तरह use करते हैं। फिर उसका misuse करते हैं। अरे भाई , हम भी एक इंसान है। कहते हैं कि दिल और दिमाग की दौड़ में, जीत दिमाग की होती है। नही चाहिए मुझे यह जीत।
किसी के आंसुओं में डूबी हुई खुशी मुझे नहीं चाहिए।
आज सब सिकंदर बनना कहते हैं, पुरु बनना क्यों नहीं ? शायद मेरे पास भगवान् ने सिकंदर जैसा दिमाग नहीं दिया। हम सब क्या हासिल करना चाहते हैं ?
आज हम सब चाँद तक पहुँच गए है , पर क्या किसी के दिल तक पहुँच पाये हैं ? शायद नहीं।
नहीं चाहिए मुझे ऐसा दिमाग जो हमें लोगों के दिलों से दूर कर दे। मेरा तो यह मानना है कि किसी को यदि मेरे आसुओं में खुशी मिलती है तो वो ही सही , आख़िर हम किसी को खुशी तो दे रहे हैं।
अपनी एक कविता की चार पंक्तियों के माध्यम से अपनी बात आपके सामने रखना चाहता हूँ।


"हर किसी को अपना समझ लेते है,
इस तरह फिर दिल को सज़ा देते हैं ,
गलती यह हम बार-बार करते हैं ,
आँखें रोंती हैं , फिर उम्र भर
लब मगर हमेशा मेरे मुस्कराते हैं। "


और यह सोचना अगर ग़लत है तो यह गलती हम बार - बार करना चाहेंगें ।

आपका ही ,
शलभ गुप्ता

आने वाला कल , एक नई इबारत लिखकर रहेगा .....



"आने वाला कल , एक नई इबारत लिखकर रहेगा।

आपके विचारों का, मेरी कविताओं से मिलन होकर रहेगा।

ख़ुद से ज़्यादा यकीन है मुझे , आप पर ...

आप देखना एक दिन, मेरा यह सपना सच होकर रहेगा।"


शलभ गुप्ता

Wednesday, May 13, 2009

इस शहर के लोग मुझे, प्यार बहुत करते हैं ......



यह शब्दों की दुनिया भी बहुत अजीब होती है। इन शब्दों की वजह से ही हम किसी अजनबी को भी एक अटूट बंधन में बाँध लेते हैं और कभी- कभी इन शब्दों के कारण ही अपनों से भी रिश्ते टूट जाते हैं।

इस शहर के लोग मुझे, प्यार बहुत करते हैं।
जब भी मिलते हैं मुझसे,खुले दिल से मिलते हैं।
क्यों ना करूँ मैं हर पल , अब ख्याल उन सबका,
अच्छे लोग इस दुनिया में,बड़ी मुश्किल से मिलते हैं।

Tuesday, May 12, 2009

श्री सिद्धि विनायक जी के दर्शन ( 11 May 2009, 11:40 A.M.)

श्री गणेशाय नमः

कल सुबह वह यादगार पल आ ही गया, जिसका मुझे बेसब्री से इंतज़ार था। श्री सिद्धि विनायक जी का आर्शीवाद मुझे प्राप्त हुआ और मेरी सिद्धि विनायक जी के दर्शनों की मनोकामना पूरी हुई।

यदि हमे अपने उद्देश्य और सही गंतव्य का पता होता है तब कदमों को अपने आप गति मिल जाती है। और कदम ख़ुद ही उस मंजिल की ओर चलने लगते हैं। अगर हमे अपने गंतव्य का पता नहीं है तब या तो हमारे कदम रुक- रुक कर चलेगे , कहीं ठहर जायेंगे या फिर मार्ग से भटक जायेंगे। कहते है सबसे तेज़ गति मन की होती है। कई बार मन की तेज़ गति हमें परेशान भी करती है। इसीलिए मेरा मानना है कि किसी कार्य में हमको सफलता तब ही मिलेगी जब हमारी मन ओर कदमों की गति एक समान है।

शलभ गुप्ता

Saturday, May 9, 2009

एक ज़िन्दगी जीने दो.




लम्हा - लम्हा मिलती है,

हर लम्हें को जीने दो.

हर लम्हें में मुझको,

एक ज़िन्दगी जीने दो.

Wednesday, May 6, 2009

मुल्कराज आनंद जी की एक कहानी ( Happy Mother's Day - 10 May 2009)

आज मैं आपको मुल्कराज आनंद जी की एक कहानी सुनाना चाहता हूँ। यह एक अत्यन्त भावनात्मक कहानी है। मेरा विश्वास है कि आपके दिल को छू जायेगी ।

एक बच्चा अपनी माँ की उंगली पकड़कर मेले में जाता है। वहां सुंदर गुब्बारे , लाल-हरी ज़री की टोपियाँ , वर्फी- जलेबी मिठाई की दुकानें देखकर बच्चा एक के बाद एक चीज मागंता है।

माँ के पास पैसे नहीं थे। इसलिए वह बच्चे को कुछ नहीं दिला पाती है। बच्चे को गुस्सा आता है, उसे अपनी माँ बुरी लगने लगती है। भीड़ में माँ की उंगली छूट जाती है।

बच्चा खो जाता है। मारे डर के जब वह रोने लगता है तब गुब्बारेवाला, टोपीवाला, मिठाईवाला उसे अपनी-अपनी चीजें देकर शांत करने की कोशिश करते हैं। बच्चा हर चीज लेने से इनकार कर देता है। उसे सिर्फ़ अपनी माँ चाहियें।

आपका ही ,
शलभ गुप्ता

Saturday, May 2, 2009

सिद्धि विनायक मन्दिर , मुंबई



वैसे तो मेरा मुंबई जाना बहुत बार हुआ है। शायद पूरा मुंबई ही देखा है मैंने। परन्तु अभी तक मुझे सिद्धि विनायक जी के दर्शनों का सौभाग्य नहीं प्राप्त हुआ है। इसीलिए अक्सर मुझे यह महसूस होता है कि अभी तक कुछ नहीं देखा मैंने।
मेरी यह भगवान से हार्दिक इच्छा है कि इस महीने मुझे सिद्धि विनायक जी के दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त हो जाए। मेरा जीवन सफल हो जाएगा।

सिद्धि विनायक जी के दर्शनों की अभिलाषा के साथ,
शलभ गुप्ता