मेरे प्रिय,
अमलतास!
अमलतास!
तुम्हारा शुक्रिया।
इसी तरह मुझे तुम,
राह दिखाते रहना।
सूरज की तेज तपन में,
तुम और निखरते रहना।
मुझे भी सिखा दो तुम,
दर्द में मुस्कराते रहना।
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जब भी मिल जाते हैं मुझे,
बैठा लेते हैं अपनी छाँव में।
करते हैं फिर ढेरों बातें,
वृक्ष यह अमलतास के।
#poet_shalabh_gupta ✍️
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