Thursday, August 18, 2011

"जब भी कभी तन्हा , महसूस करता हूँ मैं ..."





"जब भी कभी तन्हा , महसूस करता हूँ मैं ।
अपनी कविताओं से , बातें करता हूँ मैं ।
बातों में, फिर तेरा ज़िक्र करता हूँ मैं ।
ज़िक्र तेरा आते ही मेरी कविताओ के,
खामोश शब्द बोलने लगते हैं ,
फिर घंटों मुझसे , तेरी बातें करते हैं ।
मेरी कविताओं के शब्द तुमने ही तो रचे है
तुम्हारी ही तरह “शब्द” बहुत भावुक है ।
बातें मुझसे करते है , और नैनों से बरसते रहते है ।
जब भी कभी तन्हा , महसूस करता हूँ मैं ।
अपनी कविताओं से बातें करता हूँ मैं ।
अर्ध -विराम सहारा देतें है शब्दों को ,
मात्राएँ शब्दों के सर पर हाथ रखती हैं ।
हिचकियाँ लेते शब्दों को पंक्तियाँ दिलासा देतीं है ।
फिर सिसकियाँ लेते हुए शब्दों को ,
मैं सीने से लगाकर , बाहों में भर लेता हूँ,
शब्द मुझमे समां जाते है , मुझको रुला जाते है । "

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