Thursday, October 20, 2011

"ऐ - वक्त , तू बार-बार मेरा इम्तहान क्यों लेता है ?"



ऐ - वक्त , तू बार-बार मेरा इम्तहान क्यों लेता है ?
दो कदम आगे चलता हूँ, चार कदम पीछे कर देता है।
जब भी कश्ती उतारता हूँ, समुन्दर में तूफान खड़ा कर देता है।
ऐ - वक्त , तू बार-बार मेरा इम्तहान क्यों लेता है ?
एक-एक करके बड़ी लगन से , खुशियों के बीज बोता हूँ।
खिल भी ना पाते हैं फूल, कि हर मौसम को पतझड़ कर देता है।
ऐ - वक्त , तू बार-बार मेरा इम्तहान क्यों लेता है ?
मुस्कराते हुए लम्हे ना जाने कहाँ खो गये,
एक-एक करके सब मुझसे जुदा हो गये।
भीड़ भरी सड़कों पर भी तन्हा कर देता है।
ऐ - वक्त , तू बार-बार मेरा इम्तहान क्यों लेता है ?
लिखना चाहता हूँ बहुत कुछ , कहना चाहता हूँ बहुत कुछ..
लिखने बैठता हूँ जब भी मगर, मुझे नि: शब्द कर देता है।
ऐ - वक्त मेरे, तू बार-बार मेरा इम्तहान क्यों लेता है ?

5 comments:

  1. लिखना चाहता हूँ बहुत कुछ , कहना चाहता हूँ बहुत कुछ..
    लिखने बैठता हूँ जब भी मगर, मुझे नि: शब्द कर देता है।
    ऐ - वक्त मेरे, तू बार-बार मेरा इम्तहान क्यों लेता है ?बहुत ही सार्थक सवाल जिसका जवाब हम सभी तलाश रहे है.....

    ReplyDelete
  2. pata nahi kyu par leta hai jarur haa sadak par chalte chalte ye bhi bhula deta hai jana kaha hai .......sir mere sath bhi yesa hi hota hai jab waqt imtihan leta hai .....nice creation sir superb

    ReplyDelete
  3. Ashok Birla : Isi Ka Naam Zindagi Hai...Aur Abhi Meelo Chalna Hai...

    ReplyDelete
  4. Sushma Ji :"Zindagi" 100 Meter Ki race Nahi Hai, Ek "marathon" Hai... Aur Meelo Chalna Hai...Ek Din Sabko Apni Manzil Zaroor Milegi...Bas Hausla Nahi Khona Hai... Aksar Zindagi Me Aise Mukaam Aa Hi Jaate Hain...Jab Shabd Sath Nahi Dete...

    ReplyDelete
  5. Yatharthta se bahrpoor, khoobsoorat rachna

    ReplyDelete