Saturday, October 19, 2013

"चाँद कल रात का...."

चाँद कल रात का वाकई बहुत ख़ास था।
सांझ ढले से ही बस उसका इंतज़ार था।
उससे मिलने की तमन्ना में दिल बेकरार था।
आंसमा में चमक रहा मानों आफताब था।
छत पर बैठ कर बतियाँ की ढेर सारी।
आखों ही आखों में गुज़र गयी रात सारी ।
मेरे चाँद का जुदा सबसे अंदाज़ था।
चंद लम्हों में ही कई जन्मों का साथ था।
चांदनी में उसकी अपनेपन का अहसास था।
बिछुड़ने के वक्त मेरी आखों में ,
आंसुओं का ही "राज" था।
चाँद कल रात का वाकई बहुत ख़ास था।

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