धीरे-धीरे ही सही,
फिर से चलने लगी है.
तेरा शुक्रिया "ऐ ज़िन्दगी",
जैसे घर के आँगन में,
मुंडेर पर ठहरी हुई चाँदनी,
रौशनी बिखेरने लगी है।
(शलभ गुप्ता "राज")
फिर से चलने लगी है.
तेरा शुक्रिया "ऐ ज़िन्दगी",
जैसे घर के आँगन में,
मुंडेर पर ठहरी हुई चाँदनी,
रौशनी बिखेरने लगी है।
(शलभ गुप्ता "राज")
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