साँझ ढले,
जब छत पर आता हूँ मैं।
दो दिनों से चाँद को,
बहुत गौर से निहारता हूँ मैं।
उसकी चांदनी में,
बस "विक्रम" को तलाशता हूँ मैं।
@ शलभ गुप्ता
जब छत पर आता हूँ मैं।
दो दिनों से चाँद को,
बहुत गौर से निहारता हूँ मैं।
उसकी चांदनी में,
बस "विक्रम" को तलाशता हूँ मैं।
@ शलभ गुप्ता
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