Monday, March 6, 2023

"खुदगर्ज़.."

थोड़ा खुदगर्ज़ बन कर देखते हैं। 
खुद के लिए जी कर देखते हैं। 
कांधा, दर्द और आंसू भी अपने,
दिल को पत्थर कर के देखते हैं। 
अपने ग़मों को छुपा के देखते हैं। 
झूठ मूठ मुस्करा के देखते हैं। 

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