बोनसाई की तरह , क्षतविक्षित नहीं होना है मुझे ।
बरगद की तरह, उन्मुक्त होकर बढना है मुझे।
महलों का सजावटी समान नहीं बनना है मुझे।
लोगों के हाथों का खिलौना नहीं बनना है मुझे।
बरगद की तरह, उन्मुक्त होकर बढना है मुझे।
अपने अस्तित्व को "एक पहचान" देनी है मुझे।
धरा पर रह कर ही , अपनी जड़ें मजबूत करनी हैं मुझे।
बंधनों में बंधकर , छांह में नहीं रहना है मुझे।
बरगद की तरह, उन्मुक्त होकर बढना है मुझे।
खुले आकाश में रहकर, हर मौसम का सामना करना है मुझे।
ख़ुद तेज तपन में रहकर, सबको छांह देनी है मुझे।
बरगद की तरह, उन्मुक्त होकर बढना है मुझे।
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