Tuesday, October 27, 2009

"मंजिल की तलाश में......"

मंजिल की तलाश में ,
अनवरत चल रहे कदम मेरे ,
तुम्हें देखकर ठहरने से लगे हैं।
बीत गई है काली रात ग़मों की ,
आशाओं के पंछी चहकने से लगे हैं।
मंजिल की तलाश में,
अनवरत चल रहे कदम मेरे ,
तुम्हें देखकर ठहरने से लगे हैं।
बरसों से रैक में रखी, धूल की परत ज़मीं
Diary के पन्नों को एक बार
फिर से हम पलटने लगे हैं।
कई बरस पहले diary में रखे,
गुलाब के फूल आज एक बार
फिर से महकने लगे हैं।
मंजिल की तलाश में,
अनवरत चल रहे कदम मेरे,
तुम्हें देखकर ठहरने से लगे हैं।

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