
होली के दिन करीब आने लगे ।
बच्चे अभी से रंग लगाने लगे ।
रंग-बिरंगी पिचकारियों से बाज़ार सजने लगे ।
देखकर बच्चे खुश होने लगे ।
होली के दिन करीब आने लगे ।
अबीर-गुलाल हवा में बिखरने लगे ।
रंग की फुहार , मस्ती का हुडदंग ...
गली-गली में ढोल बजने लगे ।
होली के दिन करीब आने लगे ।
हर घर में पकवान बनने लगे ।
बच्चे रसोई के चक्कर लगाने लगे ।
मम्मी की बनाई हुयी गुझियों को,
छुप-छुप कर अभी से सब खाने लगे।
होली के दिन करीब आने लगे ।
इस त्यौहार की बात है निराली,
दुश्मन भी हमें अपना सा लगे।
भगवान् मेरे, प्रार्थना करो मेरी स्वीकार ...
हमारे देश के त्योहारों को ,
किसी की नज़र ना लगे ।
एक सपने की तरह
ReplyDeleteआपकी अभिव्यक्ति बड़ी निराली दिखाई दी है
गुझियों से ग़ायब हो गयी है मिठास
कानपुर और मेरठ में नकली खोये का कारोबार
गुरुदेव के. पी. सक्सेना की मानूँ तो
बालूशाही में शाही तो कुछ रहा नहीं
बस कुछ बालू सी किरकिरी दिखाई दी है..
भगवन सुन ले आपकी प्रार्थना
और लौटा दे फिर ये वो होली
रंग बिरंगी, प्यार भरी,
जिसे न जाने कब और कैसे हमने विदाई दी है.
इस गीत में आपने बहुत सुंदर कामना की है!
ReplyDelete--
मिलने का मौसम आया है!
"रंग" और "रँग" में से किसमें डूबें?
हो हो... हो... होली है!
--
संपादक : सरस पायस
आप सबका ह्रदय से आभार..... आप सभी को होली की हार्दिक शुभकामनाएं....
ReplyDeleteaap aamantrit hain holi par..prateksha raheg
ReplyDeletei aapki..
http://samvedanakeswar.blogspot.com/2010/02/blog-post_27.html
Bahut sunder bhav aur sandesh liye hai aapkee ye kavita......
ReplyDeleteहोली की हार्दिक शुभकामनाएं....
सच कहा ..........
ReplyDeleteआपको और आपके समस्त परिवार को होली की शुभ-कामनाएँ ...
ब्लॉग के मेरे सभी सम्मानित मित्रों को होली की हार्दिक शुभकामनाएं......
ReplyDeleteयह होली आप सबके जीवन में इन्द्रधनुषी रंग लेकर आये ......
सादर वा साभार !
शलभ गुप्ता
आदरणीय शलभ जी,
ReplyDeleteआपने नाम लिखने को कहा है. लेकिन नाम मं क्या रखा है. हम दो मित्रों ने मिलकर जब ये ब्लॉग शुरू किया तो सोचा था कि ये आवाज़ होगी एक आम आदमी की. मेरे दोस्त बड़े संवेदनशील हैं और व्यवस्था के प्रति बड़ा आक्रोश भी है उनके मन में. हम दोनों किसी भी विषय पर जो एक आम आदमी को प्रभावित करता है, एक सा सोचते हैं. हमारी बड़ी अच्छी केमिस्ट्री है और दो सालों से अलग होकर अलग अलग शहरों में रहते हुए भी हम जुड़े हैं - एक सरोकार से. बस यही हमारा परिचय है. नाम लिखने से आदमी ख़ास हो जाता है. और हमारी ख्वाहिश है कि
आम को आम ही रहने दो - कोई नाम न दो.
My respected "SAMVEDANA KE SWAR" ,
ReplyDeleteApp dono mitron ke Sarthak Vicharon ko mera naman !