बारिशों के मौसम में भीगना,
मुझे यूँ अच्छा लगता है।
हम कितना भी रो लें,
किसी को क्या पता चलता है।
खुदा से पूछता हूँ बार-बार,
क्यों बनाये ये मौसम चार,
एक ही मौसम रहता बरसात का,
तो कितना अच्छा होता ।
मेरे आंसुओं का किसी को,
कभी पता ना चलता ।
मौसम के बदलने से,
बारिशें थम भी जाती हैं।
आंसू मगर अब, रुक नहीं पातें हैं।
आखों से लगातार बरसते जातें हैं।
हम कितना भी रो लें,
ReplyDeleteकिसी को क्या पता चलता है।
संवेदनशील रचना
वाह .. क्या बात लिखी है .. एक ही मौसम होता तो आँसू नज़र न आते ...
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