Wednesday, July 7, 2010

"ना जाने क्यों लोग बदल जातें हैं।"

ना जाने क्यों लोग बदल जातें हैं
महकते हुए रिश्ते, चुभने लग जाते हैं
कांच की तरह नाजुक होते है रिश्ते,
बरसों के रिश्ते, एक पल में टूट जाते हैं
ना जाने क्यों लोग बदल जातें है
मुस्कराते हुए लब, खामोश हो जाते हैं
अश्क आखों से थम नहीं पाते हैं
फिर भी हम उन्हें भूल नहीं पातें हैं
ना जाने क्यों लोग बदल जातें हैं

4 comments:

  1. कारण पता हो तो हम किसी को बदलने ही क्यों दे । अच्छी रचना

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  2. प्रिय अजय जी,
    सच कहा आपने.... काश ऐसा हो जाए॥
    आपका ह्रदय से आभार ....

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  3. "बढ़िया रचना...."

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  4. @Amitraghat: Aapka hraday se aabhaar!

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