Tuesday, April 19, 2011

"घर में नहीं, अब मन लगता है..."

घर अब खाली सा लगता है ।
तुलसी का पौधा भी मुरझाया सा लगता है ।
ना जाने कैसी खामोशी है घर में ,
क्या हो गया यह कुछ ही दिन में ।
घर में नहीं, अब मन लगता है ।
घर अब खाली सा लगता है ।
दिल है मगर धड़कन नहीं ,
साज है मगर आवाज़ नहीं ,
सब कुछ सूना सा लगता है ।
घर में नहीं, अब मन लगता है ।
जीवन के इस नाजुक मोड़ पर,
तुम साथ छोड़ कर चले गये ।
बीते लम्हें जब याद आते हैं ,
आखों में आंसुओं का मेला लगता है ।
सब कुछ सूना सा लगता है ।
घर में नहीं, अब मन लगता है।
जीने को तो जी ही लेंगे हम मगर,
बिना तुम्हारे, यह जीवन
अब बोझिल सा लगता है ।
घर अब खाली सा लगता है ।
घर में नहीं, अब मन लगता है ।

4 comments:

  1. बिना तुम्हारे, यह जीवन
    अब बोझिल सा लगता है ।
    घर अब खाली सा लगता है ।
    घर में नहीं, अब मन लगता है ।bhut bhaavpur panktiya hai...

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  2. " लगता नही है दिल मेरा उजड़े दयार में "
    बहुत सुंदर लिखा है

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  3. @ Sushma Ji : Aapko Yeh Lines Pasand Aayi, Aapka Dil Se Aabhar...

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  4. @ Darshan Kaur Ji : Kisi Ke Jane Ke Baad Hi Uske Vazood Ka Pata Chalta Hai... Zindagi Sooni Ho Jaati Hai...

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