Friday, April 29, 2011

"परदेस में कहाँ अपने हैं...."

भीगी -भीगी सी यादें हैं ।
बिखरे-बिखरे से सपने हैं ।
सच कहते हैं लोग,
परदेस में कहाँ अपने हैं ।

6 comments:

  1. संवेदना से भरी पंक्तियाँ !
    आभार !

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  2. @ Gyanchand Ji : Sab Kuch Hai Pardesh Me, Bas Apne Nahi Hain...

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  3. Apne To Bnaane Pdte He. Vrna Apne Bhi Praae Ho Jate Hei.

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  4. @ Darshan Kaur ji: अपने भी पराये हो गये हैं..., इस बड़े शहर में भी तन्हा हो गये हैं...

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  5. @ सुषमा जी : अहसासों का क्या है, आंसू बन कर शब्दों में ढल जाते हैं.... दिल की हर बात कह जाते है...

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