Tuesday, December 11, 2012

"मेरे बस में हो अगर..."

मेरे बस में हो अगर, तो कोहरे से भरे इन जाड़ों के मौसम में,
माँ-पापा के लिये , यहाँ से "कुछ  धूप" भेज दूँ !
मेरे बस में हो अगर, तो सूरज की तेज तपन में,
बच्चों के लिए, यहाँ से "कुछ छाँव" भेज दूँ !
मेरे बस में हो अगर, तो पतझड़ के मौसम में ,
हमसफ़र के लिए, यहाँ से "कुछ बसंत" भेज दूँ !

 

2 comments:

  1. खुबसूरत अभिवयक्ति.....

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    1. शुक्रिया, और उनसे बदले में कोहरे में डूबी हुई जाड़ों की सर्द शाम ले लूँ .

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