Thursday, October 20, 2016

"चाँद कल रात का...."

चाँद कल रात का, वाकई बहुत ख़ास था।
सांझ ढले से ही, बस उसका इंतज़ार था।
मेरे चाँद का , जुदा सबसे अंदाज़ था।
आंसमा में चमक रहा, मानों आफताब था।
छत पर बैठ कर , बतियाँ की ढेर सारी।
आखों ही आखों में गुज़र गयी रात सारी ।
चंद लम्हों में ही, कई जन्मों का साथ था।
चांदनी में उसकी, अपनेपन का अहसास था।
चाँद कल रात का, वाकई बहुत ख़ास था।

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