Monday, November 21, 2016

"कश्ती.."

लहरों की भी हम कहाँ सुनते हैं ।
बहुत मुश्किल है हमको समझाना ।
अपनी तो आदत है तूफानों से टकराना ।
भवंर से भी कश्ती को निकाल ले जाना ।

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