कभी-कभी अपने दिल की भी सुना करो ।
मन की तितलियों को उड़ने दिया करो ।
ये माना काम में बहुत मसरूफ हो मगर,
कभी-कभी कुछ लम्हे खुद को भी दिया करो ।
बारिशों के मौसम में भी भीगा करो।
उदास ज़िन्दगी में इन्द्रधनुषी रंग भरा करो ।
कभी-कभी खुल कर भी हँसा करो ।
तितलियों को किताबों में मत रखा करो।
उनके संग-संग आसमां में उड़ा करो।
कभी-कभी अपने दिल की भी सुना करो।
मन की तितलियों को उड़ने दिया करो ।
ये माना काम में बहुत मसरूफ हो मगर,
कभी-कभी कुछ लम्हे खुद को भी दिया करो ।
बारिशों के मौसम में भी भीगा करो।
उदास ज़िन्दगी में इन्द्रधनुषी रंग भरा करो ।
कभी-कभी खुल कर भी हँसा करो ।
तितलियों को किताबों में मत रखा करो।
उनके संग-संग आसमां में उड़ा करो।
कभी-कभी अपने दिल की भी सुना करो।
(कुछ वर्ष पूर्व लिखी हुई एक कविता )
- शलभ गुप्ता "राज"
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