डायरी के कुछ पन्नों के कोने,
मैंने मोड़कर रखे हैं।
कुछ मुस्कारते लम्हें मैंने,
आज भी सहेज कर रखे हैं।
आज भी सहेज कर रखे हैं।
शायद लौट आओगे तुम एक दिन।
इसीलिए इन पथराई आँखों में,
ख़ुशी के कुछ आंसू मैंने,
आज भी सहेज कर रखे हैं।
@ शलभ गुप्ता "राज"
No comments:
Post a Comment