Saturday, November 2, 2019

कुछ पंक्तियाँ

[१]
पत्थर दिल पहाड़ भी, तन्हाइयों में बहुत रोते हैं।
ये बहते झरने, पहाड़ों के आंसू ही  होते हैं।
[२]
कश्ती  अकेली है तो क्या,
कहीं दूर नहीं जाना है मुझे।
मांझी बनकर सबको,
नदी पार ले जाना है मुझे।
[३]
अपने कदम मजबूती से रखो,
रास्ते खुद ही बनते जाते हैं।
ऊँचे नीचे रास्तों पर चलना,
राह के पत्थर ही तो सिखाते हैं। 


No comments:

Post a Comment