[१]
पत्थर दिल पहाड़ भी, तन्हाइयों में बहुत रोते हैं।
ये बहते झरने, पहाड़ों के आंसू ही होते हैं।
[२]
कश्ती अकेली है तो क्या,
कहीं दूर नहीं जाना है मुझे।
मांझी बनकर सबको,
नदी पार ले जाना है मुझे।
[३]
अपने कदम मजबूती से रखो,
रास्ते खुद ही बनते जाते हैं।
ऊँचे नीचे रास्तों पर चलना,
राह के पत्थर ही तो सिखाते हैं।
पत्थर दिल पहाड़ भी, तन्हाइयों में बहुत रोते हैं।
ये बहते झरने, पहाड़ों के आंसू ही होते हैं।
[२]
कश्ती अकेली है तो क्या,
कहीं दूर नहीं जाना है मुझे।
मांझी बनकर सबको,
नदी पार ले जाना है मुझे।
[३]
अपने कदम मजबूती से रखो,
रास्ते खुद ही बनते जाते हैं।
ऊँचे नीचे रास्तों पर चलना,
राह के पत्थर ही तो सिखाते हैं।
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