Friday, January 23, 2009

जब भी कभी तन्हा महसूस करता हूँ ...........

"जब भी कभी तन्हा , महसूस करता हूँ मै
अपनी कविताओं से , बाँतें करता हूँ मै
बाँतो में, फिर तेरा ज़िक्र करता हूँ मै .
ज़िक्र तेरा आते ही , मेरी कविताओ के
खामोश शब्द बोलने लगते हैं ,
फिर घंटों मुझसे , तेरी बाँतें करते हैं
मेरी कविताओं के शब्द तुमने ही तो रचे है
तुम्हारी ही तरह “शब्द” भावुक है
बाँतें मुझसे करते है , और नैनों से बरसते रहते है
जब भी कभी तन्हा , महसूस करता हूँ मै
अपनी कविताओं से बांते करता हूँ मै
अर्ध -विराम सहारा देतें है शब्दों को ,
मात्राएँ , शब्दों के सर पर हाथ रखती हैं
हिचकियाँ लेते शब्दों को पंक्तियाँ दिलासा देतीं है
फिर सिसकियाँ लेते हुए शब्दों को ,
मै सीने से लगाकर , बाहों में भर लेता हूँ,
शब्द मुझमे समां जाते है , मुझको रुला जाते है ."

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