Monday, January 4, 2010

"उड़ना चाहता हूँ उन्मुक्त मैं आकाश में...."



उड़ना चाहता हूँ उन्मुक्त मैं आकाश में....
ऊँचाइयों पर, पक्षियों की तरह ।
मगर , उड़ नहीं पाता हूँ मैं ....
वक्त ने बाँध दिए हैं पंख मेरे,
ठहर सी गयी है ज़िन्दगी मेरी ,
एक कमरे में सिमट कर
रह गयी है ज़िन्दगी मेरी।
सारे बन्धनों को तोड़ कर उड़ना चाहता हूँ मैं,
ऊँचाइयों पर, पक्षियों की तरह ।
कहना चाहता हूँ बहुत कुछ,
सुनना चाहता हूँ बहुत कुछ।
मगर कुछ बोल नहीं पाता हूँ,
दिल में उठ रहे तूफानों को ,
बड़ी मुश्किल से रोक पाता हूँ मैं।
उड़ना चाहता हूँ उन्मुक्त मैं आकाश में....
ऊँचाइयों पर, पक्षियों की तरह ।
मगर , उड़ नहीं पाता हूँ मैं ....
महसूस कर रहा हूँ आपको अपनी ज़िन्दगी में,
आपसे ढेर सारी बातें करना चाहता हूँ मैं।
सारे बन्धनों को तोड़ कर ,
आपके संग-संग उड़ना चाहता हूँ मैं ।
हाँ , तुमसे दोस्ती करना चाहता हूँ मैं।
इस रिश्ते को एक नाम देना चाहता हूँ मैं।
उड़ना चाहता हूँ उन्मुक्त मैं आकाश में....
ऊँचाइयों पर, पक्षियों की तरह ।

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