Sunday, February 14, 2010

"किस की नज़र लग गयी हमारे वतन को..."

प्रेम का संगीत गूंजता था जहाँ ।
पुलिस का सायरन बज रहा वहां ।
किस की नज़र लग गयी हमारे वतन को,
बम-विस्फोट हो रहे बार-बार यहाँ।
रंगोली से सजाते हैं राज्य का हर घर जहाँ ।
खून की होली खेल रहा वो ना-पाक यहाँ।
अहिंसा का सन्देश दिया गाँधी ने दुनिया को,
कौन उनके देश में हिंसा फैला रहा बार-बार यहाँ।
साबरमती और यमुना के पावन जल में,

कौन विष घोल रहा बार-बार यहाँ।
एक चोट ठीक भी ना हो पाती है,
कि दूसरी उससे भी गहरी लग जाती है।

ना 1965 को भूले, ना भूले 1971 को हम।
ना अक्षरधाम को भूले, ना भूले संसद पर हमले को हम।
ना भूले मुंबई को हम, ना भूले जयपुर को हम।
ना भूले कश्मीर की लहुलुहान घाटी को हम।
कौन हमारे जिस्म को चोट पंहुचा रहा बार-बार यहाँ।
यूँ तो वैसे भी आतंकवाद के सताए हम हैं।
हौसले हुए हमारे फिर भी ना कम हैं।
ना इम्तहान लो यूँ बार-बार हमारा।
एक ही बार में ख़त्म कर देंगें किस्सा सारा।
कुछ ही फूल खिल पातें हैं चमन में,
कौन उस चमन को उजाड़ रहा बार-बार यहाँ।
कौन हमारे जिस्म को चोट पंहुचा रहा बार-बार यहाँ।

2 comments:

  1. chalo shanti pathh karen

    शिवस्त्रोत

    नमामिशमीशान निर्वाण रूपं
    विभुं व्यापकं ब्रम्ह्वेद स्वरूपं
    निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
    चिदाकाश माकाश वासं भजेयम
    निराकार मोंकार मूलं तुरीयं
    गिराज्ञान गोतीत मीशं गिरीशं
    करालं महाकाल कालं कृपालं
    गुणागार संसार पारं नतोहं
    तुषाराद्रि संकाश गौरं गम्भीरं .
    मनोभूति कोटि प्रभा श्री शरीरं
    स्फुरंमौली कल्लो लीनिचारु गंगा
    लसद्भाल बालेन्दु कंठे भुजंगा
    चलत्कुण्डलं भू सुनेत्रं विशालं
    प्रसन्नाननम नीलकंठं दयालं
    म्रिगाधीश चर्माम्बरम मुंडमालं
    प्रियं शंकरं सर्व नाथं भजामि
    प्रचंद्म प्रकिष्ट्म प्रगल्भम परेशं
    अखंडम अजम भानु कोटि प्रकाशम
    त्रयः शूल निर्मूलनम शूलपाणीम
    भजेयम भवानी पतिम भावगम्यं
    कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी
    सदा सज्ज्नानंददाता पुरारी
    चिदानंद संदोह मोहापहारी
    प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी
    न यावत उमानाथ पादार विन्दम
    भजंतीह लोके परे वा नाराणं
    न तावत सुखं शान्ति संताप नाशं
    प्रसीद प्रभो सर्व भूताधिवासम
    न जानामि योगं जपं नैव पूजां
    नतोहम सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यं
    जराजन्म दुखौ घतातप्य मानं
    प्रभो पाहि आपन्न मामीश शम्भो .

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  2. sashakt v sarthak rachana ........
    bahut accha chintan aur sath hee lekhan .....

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