Wednesday, February 17, 2010

"कोई तुमको कुछ कहता है, दर्द मुझे क्यों होता है ?"

कोई तुमको कुछ कहता है,
दर्द मुझे क्यों होता है ?
अपनेपन का अहसास हो जहाँ ,
शायद ऐसा तब होता है।
इस अजनबी दुनिया में,
हर कोई नहीं अपना होता है।
सुख-दुःख मिलकर बाँटे जिनसे,
वो ही बस अपना होता है।
कोई तुमको कुछ कहता है,
दर्द मुझे क्यों होता है ?
खून के रिश्तों से गहरे हैं मन के बंधन ,
बंधा है इन बंधनों में जो
वो इंसान बड़ा खुशनसीब होता है।
ऐसा क्यों मेरे साथ हर बार होता है ?
समझता है जिसे दिल अपना ,
वही क्यों नजरों से दूर होता है।
कोई तुमको कुछ कहता है,
दर्द मुझे क्यों होता है ?
जरा सी बात पर छलक जाते हैं आंसू ,
दर्द मुझसे अब किसी का,
बर्दशास्त नहीं होता है।
चोट लगे तुमको,
रोने लगती हैं आँखें मेरी .......
यह अहसास भी ,
हर किसी को नहीं नसीब होता है।
कोई तुमको कुछ कहता है,
दर्द मुझे क्यों होता है ?

3 comments:

  1. bahut bahut sunder kavita aur aapke bhav .
    isee ko to kahate hai apanapan sahee artho me.........

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  2. सच है मन के बंधन ही असली के बंधन होते हैं .... जब डोर बाँध जाती है तो दर्द होना तो स्वाभाविक ही है ... बहुत सुंदर पंक्तियाँ हैं ...

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  3. कभी-कभी, पहले लिखी कविताओं को बार -बार पढ़ना मन को बहुत अच्छा लगता है। कुछ लोगों से भावनात्मक रिश्ता जुड़ जाता है, और फिर उम्रभर यही अपने पन का अहसास दिलाता रहता है।

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