Tuesday, July 13, 2010

"घर" में एक "माँ" बहुत ज़रूरी है.....



बहुत खुशनसीब होतें हैं वह लोग, जो "घर" में रहते हैं।
"घर" बनता है "परिवार" से, और अपनों के "प्यार" से ।
ना जाने कैसे जीतें है वह लोग, जो "मकान" में रहते हैं।
करते हैं दीवारों से बातें और उम्र भर तन्हा ही जीते हैं।
अकेले रह कर जीना, बस कुछ ही लम्हों का उन्माद है ।
उम्र भर फिर घुट-घुट कर जीना उनकी मजबूरी है।
दादा-दादी का हो आशीवाद जहाँ, माता-पिता का हो दुलार जहाँ।
बच्चों की किलकारियां गूंजें जिस आँगन में,
"तुलसी के पौधे " को पूजते हैं जिस घर में,
खुशियों के फूल महकते है हर पल जहाँ ,
बस वही "घर" कहलाता है।
समय के साथ , सब जिम्मेदारियां भी ज़रूरी हैं।
नारी जब तक ना बने "माँ" , तब तक वह अधूरी है।
चंदा-मामा की बातें , बच्चों को बताना ज़रूरी है।
दूर देश से आई "परियों" की कहानियां ज़रूरी हैं।
सकून से सो जातें हैं बच्चे रात भर,
"माँ" का लोरी सुनाना भी ज़रूरी है।
संवर जाती है ज़िन्दगी बच्चों की,
"घर" में एक "माँ" बहुत ज़रूरी है।
गुज़र जाती है ज़िन्दगी बड़े ही सुख और चैन से...
दिल में बस "अपनेपन" का "अहसास" ज़रूरी है।
और क्या चाहिए जीने के लिए "राज" को....
बस "थोड़ी सी मोहब्बत" , "ज़रा सा प्यार" ज़रूरी है।
बड़ों का आशीर्वाद और अपनों का साथ ज़रूरी है।

6 comments:

  1. बहुत सुन्दर भावों से सजी रचना..

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  2. घर को घर बनाने की लिए ... सच में प्यार बहुत ज़रूरी है .... माँ भी ज़रूरी है पत्नी ... बच्चे सभी ज़रूरी हैं ... सुंदर रचना है ...

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  3. @ Respected Sangeeta ji :माँ के बिना जीवन का मतलब ही नहीं है ....

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  4. @ विवेक जी : मेरी भी पलकें नम हो गयी थी यह लिखते हुए.....

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  5. @ Digambar ji: परिवार में सब का ही प्यार ज़रूरी है.... अपनेपन का अहसास ज़रूरी है.....

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