Wednesday, August 18, 2010

महज़बी उन्माद में केसर के फूल झुलस गये ।




महज़बी उन्माद में केसर के फूल झुलस गये
जिन्हें उजाला करना था अपने घरों का,
वो चिराग , हजारों घरों के बुझ गये
शमशान सा सन्नाटा है अब धरती के स्वर्ग में ,
अपने ही तो थे यह लोग, ना जाने क्यों बदल गये
महज़बी उन्माद में केसर के फूल झुलस गये
"देखगें" , "करेगें" ...बस यही क्रम चलता रहा
हालात अब और भी गंभीर हो गये
सुलग रहे कश्मीर पर,
सभी राजनैतिक दल अपनी रोटियाँ सेकने लग गये
महज़बी उन्माद में केसर के फूल झुलस गये
अभी भी वक्त है ,
स्थितियाँ और परिस्थितियाँ बदल सकती हैं
केसर की घाटियाँ फिर से महक सकतीं है
एक बार फिर से घाटी को सेना के हवाले कर देना है
राष्ट्र विरोधी ताकतों को जवाब मुहँ तोड़ देना है
अरे मुट्ठी भर लोगों, जरा होश में आओ
इतिहास गवाह है,
भारत जब अपनी पर जाये
अच्छे- अच्छे सीधे हो गये
महज़बी उन्माद में केसर के फूल झुलस गये
अपने ही तो थे यह लोग, ना जाने क्यों बदल गये

4 comments:

  1. कश्मीर समस्या को सुलझाने का एक अच्छा प्रयास है|

    ReplyDelete
  2. काश भारत दुबारा अपने रंग में आए .... जाग जाए ...

    ReplyDelete
  3. कविता बहुत अच्छी है...महज़बी को मज़हबी कर लें...

    ReplyDelete