Friday, March 4, 2011

"कल रात समुन्दर बहुत रोया है शायद..."

कल रात समुन्दर बहुत रोया है शायद,
दोपहर तक किनारे की सारी रेत भीगी हुई थी।
वह पढने लगे है अब मेरी कहानियाँ,
दिल के कागज़ पर अब तक जो लिखी हुई थी ।
सुलझने लगी है अब ज़िन्दगी की पहेलियाँ ,
बरसों से अब तक जो उलझी हुई थी ।
एक डायरी के पन्नों को लगे हैं हम पलटने,
एक जमाने से , अलमारी में जो रखी हुई थी ।

1 comment:

  1. एक डायरी के पन्नों को लगे हैं हम पलटने,
    एक जमाने से , अलमारी में जो रखी हुई थी ।


    सुन्दर ! अति सुन्दर !! सबसे सुन्दर !!!

    ReplyDelete