कल रात समुन्दर बहुत रोया है शायद,
दोपहर तक किनारे की सारी रेत भीगी हुई थी।
वह पढने लगे है अब मेरी कहानियाँ,
दिल के कागज़ पर अब तक जो लिखी हुई थी ।
सुलझने लगी है अब ज़िन्दगी की पहेलियाँ ,
बरसों से अब तक जो उलझी हुई थी ।
एक डायरी के पन्नों को लगे हैं हम पलटने,
एक जमाने से अलमारी में जो रखी हुई थी ।
( Shalabh Gupta "Raj")
सुंदर अभिव्यक्ति..
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