Saturday, April 15, 2017

"किताब.."


मेरे दिल ने भी चाहा था कई बार,
अपनी कविताओं को एक नाम दूँ मैं।
उदास शब्दों को एक मुस्कराहट दूँ मैं।
तुम आये ज़िन्दगी में बनकर प्यार ,
तुम्हें ही पढ़ा, तुम्हें ही लिखा मैंने ,
हरेक पन्ने पर कई-कई बार।  
वक्त की आंधियां चली कुछ इस तरह,
"शब्द" सारे, ना जाने कहाँ खो गये।
मेरे हाथों में बस कोरे पन्ने ही रह गये।
हम, अपनी किताब लिखने से रह गये।
(शलभ गुप्ता "राज")

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