चर्चगेट से आती हुई,
आखिरी लोकल ट्रेन की तरह,
खाली-खाली सी शाम हो गयी।
शोर मचातीं आतीं लहरें ,
पत्थरों से टकराकर,
गुमनाम हो गयीं।
घर के एक कोने में रखी,
रंग-बिरंगी छतरियाँ भी ;
बारिशों के ना आने से,
परेशान हो गयीं।
मिलना ना होगा जिनसे कभी,
ज़िन्दगी "शलभ" की ,
उसी अजनबी के नाम हो गयी।
@ शलभ गुप्ता "राज"
आखिरी लोकल ट्रेन की तरह,
खाली-खाली सी शाम हो गयी।
शोर मचातीं आतीं लहरें ,
पत्थरों से टकराकर,
गुमनाम हो गयीं।
घर के एक कोने में रखी,
रंग-बिरंगी छतरियाँ भी ;
बारिशों के ना आने से,
परेशान हो गयीं।
मिलना ना होगा जिनसे कभी,
ज़िन्दगी "शलभ" की ,
उसी अजनबी के नाम हो गयी।
@ शलभ गुप्ता "राज"
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