Wednesday, July 18, 2018

"बारिशें..."

अब के भी बरसीं हैं बारिशें फिर पहले की तरह ......
तन तो भीगा खूब मगर, मन रहा प्यासा मेरा पहले की तरह।
पेड़ों पर लगे सावन के झूलों को खाली ही झुलाते रहे,
उन बारिशों से इन बारिशों तक इंतज़ार हम करते रहे।
वो ना आये इस बार भी मगर पहले की तरह ।
अब के भी बरसीं हैं बारिशें फिर पहले की तरह ......
वो साथ नहीं हैं यूँ तो, कोई गम नहीं है मुझको ।
मुस्कराहटें "राज" की नहीं हैं, मगर पहले की तरह।
यूँ तो कई फूल चमन में, खिल रहे हैं आज भी मगर ।
खुशबू किसी में नहीं है, जो दिल में बस जाये पहले की तरह।
अब के भी बरसीं हैं बारिशें फिर पहले की तरह ......
@ शलभ गुप्ता "राज"

(कई वर्ष पूर्व लिखी मेरी एक कविता, इंद्रधनुषी यादों के साथ) 

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