Wednesday, January 20, 2010

"क्योकिं बच्चे नहीं जानते, कि बच्चे क्या होते हैं ? "

कभी कभी उसका स्कूल से देर से,
लौटना मुझे परेशान कर देता है।
ऑफिस के काम में नहीं लगता फिर मन मेरा,
स्कूल के फ़ोन मिलाने लगता हूँ।
सड़क पर आकर फिर बस की राह देखता हूँ।
क्योकिं बच्चे नहीं जानते, कि बच्चे क्या होते हैं ?
अपने वजन से ज्यादा भारी बैग अपने ,
नाजुक कन्धों पर लेकर जब वो बस से उतरता है ।
लपक कर वह बैग मैं , अपने हाथों में ले लेता हूँ।
क्योकिं बच्चे नहीं जानते, कि बच्चे क्या होते हैं ?
पानी की खाली बोतल , और भरा हुआ ...
लंच बॉक्स भी थमा देता है वो मेरे हाथों में।
फिर ऊँगली पकड़कर मेरी साथ-साथ बढता है ।
नन्हे-नन्हे पैरों से बड़े-बड़े कदम चलता है ।
खुश होता है वह कि मैं उसका साथ हूँ।
उससे ज्यादा खुशी मुझे होती है ,
कि वह मेरे साथ है।
क्योकिं बच्चे नहीं जानते, कि बच्चे क्या होते हैं ?
यूँ तो अब टॉफियाँ नहीं खाता हूँ मैं ,
खा लेता हूँ मगर, जब आधी तोड़ कर देता है वह,
क्योकिं बच्चे नहीं जानते, कि बच्चे क्या होते हैं ?
यूँ तो अपना होम-वर्क ख़ुद कर लेता है मगर,
"Math" में जरुरत मेरी महसूस करता है।
तब ऑफिस की लाखों की गुणा-भाग को छोड़कर,
"3" और "2" को जोड़ना अच्छा लगता है ।
क्योकिं बच्चे नहीं जानते, कि बच्चे क्या होते हैं ?

4 comments:

  1. बहुत प्रभावशाली रचना की है!
    --
    "सरस्वती माता का सबको वरदान मिले,
    वासंती फूलों-सा सबका मन आज खिले!
    खिलकर सब मुस्काएँ, सब सबके मन भाएँ!"

    --
    क्यों हम सब पूजा करते हैं, सरस्वती माता की?
    लगी झूमने खेतों में, कोहरे में भोर हुई!
    --
    संपादक : सरस पायस

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  2. aapka hraday se aabhar, aansu khushi ke ho yaa dukh ke chalak jaaye to hi achcha hai....aapke shabdon ne mujhe bhaav vibhor kar diya....ravi ji !

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  3. मुझे आपकी रचना सचमुच अच्छी लगी!
    मेरा ब्लॉग "सरस पायस" बच्चों को समर्पित है!
    आप भी बच्चों के लिए उपयोगी अपनी रचनाएँ प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं!

    --
    संपादक : सरस पायस

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  4. zaroor ravi ji.... mera aapse vaada hai.....

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