Thursday, April 15, 2010

जब भी कभी तन्हा , महसूस करता हूँ मैं .......

जब भी कभी तन्हा , महसूस करता हूँ मैं .......
अपनी कविताओं से , बाँतें करता हूँ मैं
बाँतो में, फिर तेरा ज़िक्र करता हूँ मैं .
ज़िक्र तेरा आते ही , मेरी कविताओ के
खामोश शब्द बोलने लगते हैं ,
फिर घंटों मुझसे , तेरी बाँतें करते हैं
मेरी कविताओं के शब्द तुमने ही तो रचे है
तुम्हारी ही तरह “शब्द” भावुक है
बाँतें मुझसे करते है , और नैनों से बरसते रहते है
जब भी कभी तन्हा , महसूस करता हूँ मैं
अपनी कविताओं से बांते करता हूँ मैं
अर्ध -विराम सहारा देतें है शब्दों को ,
मात्राएँ , शब्दों के सर पर हाथ रखती हैं
हिचकियाँ लेते शब्दों को पंक्तियाँ दिलासा देतीं है
फिर सिसकियाँ लेते हुए शब्दों को ,
मै सीने से लगाकर , बाहों में भर लेता हूँ,
शब्द मुझमे समां जाते है , मुझको रुला जाते है ।

6 comments:

  1. ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है .

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  2. बहुत भावुक रचना...शब्दों से बात करना...कहीं ना कहीं मन को शांत करता है...बहुत बढ़िया प्रस्तुति

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  3. bahut bhavuk rachana.............bhav vibhor kar gayee......

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  4. मैं नहीं लिखता...."उनका" अहसास लिखता है....

    आपका बहुत-बहुत आभार प्रिय संजय भास्कर जी....

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  5. Respected Sangeeta ji,
    Thanks for your kind words....You know.... My poems are my best friend....

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  6. श्रद्धेया ,

    आपके प्रेरणादायी शब्द मुझे वास्तव में "अपनत्व" की सुखद अनुभूति प्रदान करते हैं.....

    सादर व साभार!

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