Wednesday, January 12, 2011

"कल शाम तन्हाइयों का आलम , कुछ इस कदर रहा .."



कल शाम तन्हाइयों का आलम ,
कुछ इस कदर रहा ।
कई घंटों तलक खुद ही मैं ,
अपने आप से बेखबर रहा ।
जाना था कहाँ, कदम गये किधर ।
ना जाने क्यों ,
रेत पर नगें पैर , मीलों चलता रहा ।
मैं इधर चलता रहा ,
सूरज उधर ढलता रहा।
कल शाम तन्हाइयों का आलम ,
कुछ इस कदर रहा ।
कई घंटों तलक खुद ही मैं ,
अपने आप से बेखबर रहा ।
यूँ तो कोई साथ नहीं था मेरे,
मगर ना जाने क्यों ,
मुझे यह महसूस होता रहा ।
कोई बार-बार मेरे पीछे आता रहा ।
मुड़ कर देखा जब भी मैंने,
कोई नहीं आता था नज़र।
बस उसके कदमो के निशान ,
आते थे मुझे नज़र ।
मगर अब मैं समझ गया था,
वह कोई अजनबी नहीं था।
किसी की यादों का साया था ।
कुछ नहीं कहा मैंने,
बस , अपने रस्ते चलता रहा ।
कल शाम तन्हाइयों का आलम ,
कुछ इस कदर रहा ।
कई घंटों तलक खुद ही मैं ,
अपने आप से बेखबर रहा ।

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