Tuesday, June 9, 2015

"नये सफर.."

यादों के सहारे कब तक जिया जायेगा ,
चल उठ, अब फिर से जिया जायेगा।  
कल की गठरी को मन से उतार,
अब नये  सफर पर चला जायेगा।  
तमाम उम्र झुलसती रही ज़िन्दगी,
अब के बारिशों में खूब भीगा जायेगा।  
भीड़ में भी तन्हा ही चलते रहे "शलभ",
अब किसी को हमराह बनाया जायेगा।  
( शलभ गुप्ता "राज")

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