तुम्हारी यादों के आंसू,
मेरी पलकों पर आकर ठहरे हैं ।
बरस नहीं सकते मगर,
मेरी आखों पर पहरे हैं ।
"राज" बहुत गहरे हैं ।
जुदा हुये थे जिस मोड़ पर,
हम आज तक वहीं ठहरे हैं ।
किस तरह याद करें तुमको,
मेरी हिचकियों पर पहरे हैं ।
"राज" बहुत गहरे हैं ।
मेरी पलकों पर आकर ठहरे हैं ।
बरस नहीं सकते मगर,
मेरी आखों पर पहरे हैं ।
"राज" बहुत गहरे हैं ।
जुदा हुये थे जिस मोड़ पर,
हम आज तक वहीं ठहरे हैं ।
किस तरह याद करें तुमको,
मेरी हिचकियों पर पहरे हैं ।
"राज" बहुत गहरे हैं ।
@ शलभ गुप्ता "राज"
कुछ वर्ष पूर्व लिखी एक कविता
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