Monday, December 9, 2019

"राक्षसी धुएं ..

देख लिया ना !
क्या मिला तुम्हें ?
बड़े शहर में आकर।
कंक्रीट के जंगल में,
10 X 10 की बंद कोठरी।  
कारखानों से निकलते हुए,
इस राक्षसी धुएं के सिवा। 
तुम्हारे माता - पिता को,
तुम्हारी जली हुई लाशों के सिवा।
कुछ दिन शोर शराबा होगा,
एक दूसरे पर दोषारोपण होगा। 
लाशों के जलते ढेर पर अब, 
कुछ दिन राजनैतिक रोटियां सिकेंगी। 
सरकारी विभागों के साथ फिर,
कुछ कागज़ी कार्यवाही होगी।
मिलने वाले "मुआवज़े" से फिर,
गरीबों की आवाज़ दब जायेगी।
कुछ दिनों बाद मीडिया को फिर,
नई ब्रेकिंग न्यूज़ मिल जायेगी।
जो चले गए अब लौट सकते नहीं,
जो बचे हैं, सँभल सकते हैं।
अब भी कुछ नहीं बिगड़ा,
वापस लौट आओ तुम। 
अपने गाँव में भी है रोटी,
महानगर की तंग गलियों से निकलकर, 
लौट चलो अपने घर की ओर।
कड़वे नीम की ठंडी छांव और,
कुएं के मीठे पानी की ओर।

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