Monday, December 9, 2019

"घर"

"घर", घर नहीं रहे,
"मकान" हो गए हैं।
दिखावटी रिश्तों का,
सामान हो गए हैं।
चार दीवारी में हैं,
अब कई दीवारें।
संवेदनाओं का,
एक भी पौधा,
अंकुरित होता नहीं,
अब आँगन में।
"घर", घर नहीं रहे,
रेगिस्तान हो गए हैं। 

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